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६१. जितारमा ही शरण और गति-१
धर्मप्रेमी बन्धुबो !
आज मैं आपके समक्ष ऐसी आत्मा की चर्चा करना चाहता हूँ, जो विजयी है, विजित है, जिसने बाह्य युद्ध में नहीं, आन्तरिक युद्ध में विजय प्राप्त कर ली है। गौतम कुलक का यह ५०बी जीवनसूत्र है । महर्षि गौतम ने इस सूत्र को इस हंग से प्रस्तुत किया है
"अप्पा जिअप्पा सरणं गई अ।" _ "ऐसी आस्मा, जो जितात्मा है, वही भव्यजीवों के शरणयोग्य और गतिप्रगतिप्रेरक होती है ।"
जितात्मा क्या है ? जितात्मा कौन और कैसे बन सकता है ? और वही भव्यजीवों के लिए शरणदाता वीर गति-प्रमतिप्रेरक क्यों हो सकता है, अन्य क्यों नहीं ? आइए, इन जीवन-स्पर्शी प्रश्नों पर गहराई से विचार कर लें।
जितात्मा की व्याख्या आत्मा शब्द केवल आत्मा अर्थ में ही नहीं है, उसके संस्कृत भाषा में अनेक अर्थ बताये गये हैं। देखिये, अमरकोश में आत्मा शब्द के विभिन्न अयों की अभिव्यक्ति
'आत्मा बत्नो अतिर्बुद्धिः स्वभावी, ब्रह्म वम च।' आत्मा के यत्न, धर्य, बुद्धि, स्वभाव, स्व, ब्रह्म (आत्मा या परमात्मा) एवं शरीर, मन, इन्द्रिय आदि अनेक अर्थ होते हैं। इस दृष्टि से विजितात्मा के भी निम्नलिखित अर्थ फलित होते हैं
(१) पुरुषार्थ पर विजय पाने वाला (२) धैर्य का विजेता (३) बुद्धि पर विजयी (४) स्वभाव को जीतने वाला (५) आत्मजयी—अपने आप पर विजय पाने वाला । (६) परमात्मतत्त्व को भी अपने गुणों से जीतने वाला। (७) शरीर, मन एवं इन्द्रियों पर विजय पाने वाला । जितेन्द्रिय, या मनो.
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