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________________ अनवस्थित आत्मा ही दुरात्मा १७ कोई विद्या बुद्धि से रहित, कोई धनहीन, तो कोई साधनहीन बताकर अपने भाग्य को या परमात्मा को कोसता है, कोई परिस्थितियों का रोना रोता है । वस्तुत: आत्महीनता अनवस्थित दशा में से पैदा होती है, और वह मनुष्य की आत्मा को दीन-हीन, कंगाल और तुच्छ बना देती है । आत्महीनता के कारण कोई भी व्यक्ति चाहे जितना बुद्धिमान हो, क्रियाकांडी हो, धनाढ्य हो, आत्मिक उन्नति नहीं कर पाता, उसे गई - बीती स्थिति में ही अपनी जिंदगी काटने को विवश होना पड़ता है । ऐसे आत्महीनता से ग्रस्त व्यक्ति में आशा, आकांक्षा, आत्मविश्वास, आत्मबल, साहस आदि उन्नति और प्रगति के आधारभूत गुणों का सर्वथा अभाव-सा होता है । ऐसे आत्महीन लोग अपनी आत्मा को जानबूझकर दुरात्मा बना देते हैं । व्यावहारिक क्षेत्र में वे प्रायः दूसरे लोगों के धन-वैभव, कारबार, मान-सम्मान, पदप्रतिष्ठा आदि पर दृष्टि गड़ाये रहते हैं, और उन्हें बड़ा आदमी मान बैठते हैं, जिनके पास ये साधन हों। फिर उनकी स्थिति से अपनी तुलना करके ऊहापोह में पड़े रहते हैं। तभी उनमें आत्महीनता के अंकुर पनपने लगते हैं । जो व्यक्ति आत्मविश्वासी हैं, अपने आप में अवस्थित हैं, वे चाहे जैसी परिस्थिति में हों लेकिन आत्महीनता के शिकार नहीं होते । वे उत्साह, साहस और आत्मबल के आधार पर आगे बढ़ते हैं । आध्यात्मिक क्षेत्र में भी यही बात है । आत्महीनता को जो पास में नहीं फटकने देते, वे ही आध्यात्मिक क्षेत्र में विजयी होते हैं, आत्मविकास में सफल होते हैं । 1 जो आत्माएँ अवस्थित दशा में होती हैं, उनमें दृढ़ संकल्पशक्ति होती है । वे जब दृढ़ संकल्प कर लेते हैं तो इससे उनकी शारीरिक, मानसिक एवं अन्य शक्तियों को बहुत बड़ा बल मिलता है । एक व्यावहारिक उदाहरण लीजिए । ५५ वर्ष की आयु में अंग्रेजी के सुप्रसिद्ध लेखक 'सर वाल्टर स्काट' पर बीस लाख रुपयों का कर्ज हो गया था । उन्होंने निश्चय किया कि वह कर्ज पूरा-पूरा चुकाएंगे। इस दृढ़ संकल्प से उनके मन के प्रत्येक परमाणु को बल मिला। शरीर के प्रत्येक तन्तु से यही ध्वनि निकलने लगी कि 'कर्ज अवश्य चुकाना चाहिए।' वे साहित्यलेखन से धनोपार्जन करने लगे और कर्ज चुकाने में लग गये । आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि उन्होंने कुछ ही वर्षों में सारा कर्ज चुकाकर अपने संकल्प को पूर्ण किया । दृढ़संकल्पी व्यक्तियों की आत्मा अवस्थित होती है, उनके लिए असम्भव जैसा कुछ नहीं होता । परन्तु जो निर्बल विचारों के, अन्यमनस्क एवं अनिश्चयात्मक स्थिति वाले व्यक्ति होते हैं, उनका कोई भी कार्यं पूर्ण नहीं होता । प्रत्येक कार्य में उनका मनोबल गिरा रहता है । ऐसी आत्मा अनवस्थित दशा वाली होती है । वह क्या व्यावहारिक, क्या आध्यात्मिक सभी क्ष ेत्रों में असफल होते हैं । मनोविकारों के आगे घुटने टेक देते हैं, आध्यात्मिक विचारों पर डटे नहीं रहते और अन्त में अपनी आत्मा को दुरात्मा बना देते हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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