________________
३५०
आनन्द प्रवचन भाग ११
दारिद्र यान्मरणाद् वा मरणं मे रोचते न दारिद्र यम् ।
अल्पक्लेशं मरणं, दारिद्र यमनन्तकं दुःखम् ॥
-दरिद्रता और मृत्यु इन दोनों में से मुझे मृत्यु ही पसंद है, दरिद्रता नहीं । मृत्यु में तो एक बार थोड़ा-सा कष्ट होता है, परन्तु दरिद्रता के कष्टों का कोई अन्त ही नहीं है।
उस बढ़ई ने सोचा-इस दरिद्रता से तो मरना ही अच्छा । मेरे लिए अब इस संसार में कोई स्थान नहीं है । जहर के लिए भी एक पैसा मिल जाता तो मैं जीवन का आसानी से अन्त कर देता । अब तो मृत्यु की शरण लेना श्रेयस्कर है। रेलगाड़ी की पटरी तो सबके लिए सुलभ है, उसमें तो कोई पैसा नहीं लगता । बस, दरिद्रतापीड़ित वह बढ़ई सब ओर से निराश होकर रात को रेल की पटरी पर लम्बा सो गया। गाड़ी धड़धड़ाती हुई आई और एक ही झटक में बढ़ई के शरीर पर फिर गई। शरीर के टुकड़े-टुकड़े हो गये। इंजिन ड्राइवर ने गाड़ी रोकी । यात्रियों में से कुछ लोग अचानक गाड़ी रुकने के कारण उतर पड़े, देखा कि एक आदमी रेलगाड़ी के नीचे कटकर मर गया है । लोग अफसोस करने लगे । उसकी जेबें टटोली गई, जेब में एक पर्ची निकाली, जिस पर लिखा था-"इस संसार में मेरा जीना व्यर्थ है, मैं एक पैसे के लायक भी नहीं, इसलिए इस संसार से मैं विदा होता हूँ।"
__ अफसोस करने वाले यात्रियों में वह सेठ भी था, जिसने उस बढ़ई को एक पैसा देने से भी इन्कार कर दिया था। उसने ज्यों ही वह पर्ची पढ़ी स्मृतिपट पर उस बढ़ई का चित्र उभर आया। उसकी आँखों से आँसू उमड़ पड़े। घोर पश्चात्ताप हुआ—'हाय ! मेरे कारण से इसे आत्महत्या करनी पड़ी।
इस घटना से आप अनुमान लगा सकते हैं कि दरिद्रता कितनी बुरी है ! दरिद्रता मनुष्य को मरने के लिए विवश कर देती है, दीन-हीन, पराधीन बना देती है। दरिद्र व्यक्तियों के साथ अमीर लोग बेरहमी से पेश आते हैं। उन पर मनमाना अत्याचार करते हैं। अपना शील और सतीत्व भी दरिद्रता की बलिवेदी पर चढ़ा दिया जाता है। दरिद्रावस्था में पारस्परिक प्रेम का नाश हो जाता है, नैतिक दृष्टि से भी मनुष्य निर्बल हो जाता है। उसका तेजोवध हो जाता है । इसीलिए एक कवि कहता है
जीवन्तोऽपि मृताः पंच व्यासेन परिकीर्तिताः ।
दरिद्रो व्याधितो मूर्खः प्रवासी नित्यसेवकः ॥ वेदव्यास ने इन पांचों को जीवित रहते हुए भी मृतवत् कहा है-(१) दरिद्र, (२) व्याधिग्रस्त, (३) मूर्ख (४) प्रवासी और (५) नित्यसेवक ।
इसीलिए दरिद्रता के दुःख का वर्णन करते हुए एक कवि ने परमात्मा से प्रार्थना की है
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org