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मृत और दरिद्र को समान मानो
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टॉल्स्टॉय-"अच्छा, आँखें न सही । तुम अपने दोनों कान मेरे एक मित्र को दे दो, वह तुम्हें बीस हजार दे देगा। बोलो, स्वीकार है न ?"
युवक-"कान भी मैं नहीं दे सकूँगा । कान दे दूं तो मैं सुनूंगा किन से ?'
टॉल्स्टॉय-"तो फिर मेरे एक बन्धु हैं, वे तुम्हारे दोनों हाथ खरीद लेंगे, तीस हजार रुपये में । हाथ तो दे दोगे न ?”
युवक-"साहब ! आप क्या मजाक कर रहे हैं ? मैं हाथ कैसे दे सकता हूँ? हाथ दे दूंगा तो फिर काम किन से करूंगा ? वजन कैसे उठाऊंगा ? जीवन-निर्वाह के एक मात्र साधन दो हाथ ही तो हैं । इन्हें देकर क्या मैं अपने जीवन को पराधीन और बेकार बना लूं ?"
टॉल्स्टॉय-"मालूम होता है, तुम्हें अपनी बहुमूल्य शरीर-सम्पदा का पता नहीं है । चलो, हाथ मत बेचो, तुम्हारे दोनों पैर बेच दो । मैं स्वयं खरीद लेता हूँबीस हजार में । बोलो, बेच सकोगे तुम ?"
युवक-"महाशय ! दो पैर बेच दूंगा तो मैं सर्वथा अपंग हो जाऊँगा, पहले ही तो मैं बेकार हूँ। फिर पैर न रहने से और अधिक बेकार व पराधीन हो जाऊँगा। इसलिए पैर मैं हर्गिज नहीं बेच सकूँगा।"
___टॉल्स्टॉय-"अभी तुम्हारे पास नाक, मस्तक आदि कई अवयव हैं और सब मिलाकर, ये अंगोपांग कई लाख रुपयों के होंगे । पर तुम बेचोगे नहीं, ऐसा तुम्हारे मूड से पता लगता है । पर तुम्हें यह तो मालूम हो ही गया है कि तुम तन से दरिद्र नहीं हो। तुम्हारे पास लाखों का माल है, इसलिए धन से भी दरिद्र नहीं हो, परन्तु तुम अपने अज्ञान के कारण मन और बुद्धि से दरिद्र बन रहे हो। बोलो, हो न तुम लाखों के स्वामी ?"
युवक-"हाँ, साहब ! सचमुच मेरे पास लाखों की सम्पदा है, परन्तु मैं अपने आप को दरिद्र महसूस कर रहा था । आपने मेरी आँखें खोल दीं। बताइये अब मैं क्या करूं जिससे मेरो दरिद्रता दूर हो ?"
टॉल्सटॉय ने युवक से कहा- "सचमुच तुम बहुत भाग्यशाली हो, युवक ! तुम्हारे पास श्रम की बहुमूल्य पूँजी है । यह कुल्हाड़ी लो, और श्रम करके कमाओ।"
युवक कुल्हाड़ी लेकर और टॉल्स्टॉय को प्रणाम करके खुशी-खुशी चला गया।
यह है, मन की दरिद्रावस्था का यथार्थ चित्रण और उसके निवारण का समुचित उपाय !
वस्तुतः दरिद्रता-मानसिक, बौद्धिक दरिद्रता-कोई नैसर्गिक या स्वाभाविक चीज नहीं है।
मन का दरिद्र एक और प्रकार का भी होता है। वह धन और तन से तो
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