________________
३३८ आनन्द प्रवचन : भाग ११ शक्ति भी दरिद्रावस्था में आती है। दरिद्रावस्था में जठराग्नि भी प्रदीप्त हो जाती है, इसलिए दरिद्रता परम औषध है।
-जो लोग ऐश्वर्यशाली हैं, उनकी आँखें ऐश्वर्य से अंधी हो जाती हैं, जिससे वे दरिद्रों को देखकर भी नहीं देखते । किन्तु दरिद्र की अनुभवपुनीत आँखें दूसरे की दरिद्रावस्था को देख सकती हैं । इसलिए दारिद्र य परम औषध है ।
यह तो सब का अनुभव है कि दरिद्रावस्था में मनुष्य में कष्ट-सहिष्णुता, साहस, अध्यवसाय और कर्मठता आदि गुणों का विकास हो सकता है। इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति कुछ समय तक दरिद्रावस्था में रह चुकता है, उसमें जन्म से अमीर रहने वालों की अपेक्षा परोपकार, दया, सहानुभूति आदि का भाव कहीं अधिक होता है।
इसका यह मतलब नहीं है कि जान-बूझकर दरिद्रता को ओढ़ा जाये, कदाचित् अशुभकर्मोदयवश दरिद्रता आ पड़े तो उस समय इन गुणों का अनायास ही विकास हो सकता है।
परन्तु दुःख है कि मन के दरिद्र या बुद्धि के दरिद्र पहले से ही पस्तहिम्मत होकर हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाते हैं। मनोदरिद्र किसप्रकार निरुत्साह होकर अपनी शक्ति और क्षमता को भूल जाता है ? इसे समझने के लिए एक ऐतिहासिक उदाहरण लीजिए
रूस के प्रसिद्ध समाज-निर्माता, विचारक टॉल्स्टॉय के पास एक दिन एक युवक आया, जो उनसे सहायता की प्रार्थना करने लगा-“महाशय ! मैं बहुत ही गरीब हैं। मेरे पास जीवन-निर्वाह के लिए कुछ भी साधन नहीं हैं । धन के अभाव में मेरा जीवन बहुत दुःखी हो गया है ।"
टॉल्स्टॉय ने उसकी ओर आश्चर्य भरी दृष्टि से देखकर कहा-"युवक ! तुम तो बहुत धनवान और भाग्यवान दिखते हो, फिर तुम अपने आपको निर्धन और भाग्यहीन क्यों कहते हो ?"
युवक बोला-"आप तो मेरे जले पर नमक छिड़क रहे हैं। मैं एक तो निर्धन हूँ, उस पर आप ऊपर से मुझे चिढ़ाते हैं । ऐसा तो न कीजिए।"
टॉल्स्टॉय-"नहीं, युवक ! मैं तुम्हें चिढ़ा नहीं रहा हूँ । मैं तुम्हें यथार्थ बात कह रहा हूँ। तुम्हारे पास लाखों की सम्पत्ति है।"
युवक-"कहाँ है, मेरे पास लाखों की सम्पत्ति ? लाख कौड़ी भी तो नही हैं।"
टॉल्स्टॉय-"अच्छा तुम्हारे पास दो आँखें हैं न ? मेरा एक मित्र है, वह इन्हें तीस हजार में खरीद लेगा। बोलो, तुम्हें देना मंजूर है ?"
युवक-"अजी साहव ! खूब कही आपने ! आँखें दे दूंगा तो मैं अंधा हो जाऊंगा। मेरे लिए सारी दुनिया सूनी हो जाएगी । मैं किसी प्रकार का आनन्द नहीं ले सकूँगा। इसलिए आँखें तो मैं हर्गिज नहीं दे सकता।"
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org