________________
मूर्ख और तिच को समान मानो
३३३.
नहीं लेता बीमार पड़ता है तो खाना छोड़ देता है, परन्तु मूर्ख मनुष्य जिस मालिक के यहाँ नौकरी करता है, उसका कार्य शक्तिभर और वफादारी के साथ नहीं करता, वह कार्य से जी चुराता है, मेहनत पूरी नहीं करता किन्तु बदले में खाना पूरा चाहता है, सब सुविधायें चाहता है, बीमार होने पर भी मूर्ख मानव प्रायः खाना नहीं छोड़ता । कई बार तो मूर्ख मानव मालिक को हानि पहुँचाकर काम बिगाड़ कर भी मेहनताना पूरा माँगता है ।
एक सम्भ्रान्त परिवार में एक दयनीय हालत का नौकर था । उसे पति-पत्नी दोनों ने मिलकर ही रखा था । नाम था - चतुरी । वह आवाज लगाते ही बोलता'जी हाजिर !' पर हाजिर होने के बाद काम जो कहते थे, उसमें बड़ी देर लगाता या करता नहीं था । एक दिन रात को उस सम्भ्रान्त गृहस्थ के यहाँ एक मित्र आगये, परिवार का अग्रगण्य मित्र से बात कर रहा था । फरमाबरदार चतुरी हरदम आसपास ही रहता था । कब क्या हुक्म हो । अचानक मित्र ने पूछा - " चतुरी ! पानी है ? " चतुरी ने तुरन्त कहा - 'जी हाँ ; कुए में है ।" मित्र तो हँस पड़े पर गृहस्वामी झेंप गये ।
गर्मी का मौसम था। दोपहर के समय दो तीन मित्र आगये । वे बैठे गृहस्वामी से बात कर रहे थे । उन्होंने पानो पीना चाहा । गृहस्वामी ने आवाज दी"चतुरी !" बटन दबाते ही जैसे बिजली जल जाती है, चतुरी की आवाज आई - " जी ! "
गृहस्वामी ने कहा – “जा, दो-तीन ग्लास ठंडा शरबत बना ला ।" 'जी' कह चतुरी चला गया । गया सो गया । आने का नाम नहीं । गृहस्वामी को शर्म भी आई और क्रोध भी । गृहस्वामी ने झल्लाकर कहा - " चतुरी !" आवाज के साथ ही सशरीर हाजिर होकर कहा - " जी !” गृहस्वामी बोला – “अबे ! शरबत के लिए कहा था न !" वह बोला - " जी !”
गृहस्वामी - " तो शरबत कहाँ है ?"
चतुरी - " जी ! बर्फ नहीं मिल रही है ।"
गृहस्वामी – “कल जहाँ रखी थी, वहीं ढूंढ न !”
चतुरी - " जी । तमाम जगह ढूंढ ली, नहीं मिली । " गृहस्वामी सिर ठोककर रह गये । चतुरी हंसता रहा ।
यह मूर्खता पशुता की सीमा को भी लांघ गई । पशु भी इशारे से बहुत सी बात समझ लेते हैं और तदनुसार काम करते हैं, मगर मूर्ख इशारा तो दूर रहा, कहने पर भी नहीं समझता, समझता है तो भी तदनुसार काम नहीं करता ।
पशु अगर किसी बात को नहीं समझता है, तो वह उस काम को नहीं कर पाता, पर उलटा काम तो नहीं करता: मगर मूर्ख मनुष्य तो कभी-कभी उलटे काम
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org