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________________ मूर्ख और तियंच को समान मानो ३२१ राजा यह सुनकर अपमान के मारे जमीन में धंसता जा रहा था। उसने कन्या की ओर देखकर पूछा-"अच्छा बतलाओ, दूसरा मूर्ख कौन-सा है जो तुम्हारी खाट का दूसरा पाया है ?” कनकमंजरी-“राजन् ! वह है घुड़सवार जो राजमार्ग पर बहुत तेजी से घोड़ा दौड़ाता है । राजमार्ग पर बालक, स्त्री, वृद्ध सभी चलते हैं, वहाँ तो घोड़ा धीमी चाल से चलाना चाहिए । तीव्र गति से दौड़ाने पर कोई भी उस घोड़े की चपेट में आ सकता है ? पर उस लापरवाह घुड़सवार में इतनी बुद्धि कहाँ ? अत: दूसरा मूर्ख वह घुड़सवार है।" राजा ने फिर पूछा-“अच्छा यह बताओ, तीसरा मूर्ख कौन है ?" कनकमंजरी-“राजन् ! तीसरा मूर्ख मेरा पिता है। वह ऐसे है कि मैं उसके लिए गर्म-गर्म भोजन लेकर आती हूँ, तो वह मेरे आने के बाद शौच के लिए जाता है । इतनी देर में भोजन ठंडा हो जाता है। उसमें इतनी बुद्धि नहीं कि भोजन के समय से पूर्व ही शौचादि से निपटकर तैयार रहना चाहिए, ताकि बुढ़ापे में गर्म और ताजा भोजन किया जा सके । इसलिए वह भी मूर्खता का कार्य है और क्या ? राजा ने पूछा-"और चौथा मूर्ख कौन है, तुम्हारी दृष्टि में ?" कनकमंजरी ने सीधे और स्पष्ट शब्दों में बेधड़क कह दिया-"चौथे मूर्ख हो तुम, जो यहाँ आते ही भीत पर मयूरपिच्छ (चित्रित) देखकर उसे लेने को झपट पड़े। यह नहीं सोचा कि भला, दीवार में मोर कैसे बैठ सकता है ? उतावली में हाथ मार कर व्यर्थ ही अपना नाखून तोड़ लिया । क्या यह मूर्खता नहीं है ?" राजा कन्या की बुद्धिमत्ता और वचन-चातुरी देखकर आश्चर्यचकित हो गया। उसने कनकमंजरी की बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर उसके साथ पाणिग्रहण कर लिया। कहानी आगे चलती है, परन्तु आगे की बातों से यहाँ कोई प्रयोजन नहीं है। यहाँ तो 'मूर्ख' के लक्षण की बात चल रही है। इन चारों में दूरदर्शिता और सूक्ष्मबुद्धि नहीं थी, चारों हित-अहित, कर्तव्य-अकर्तव्य का विवेक नहीं कर पाये थे । मूर्ख : वाणी में अविवेकी मूर्ख की सबसे अच्छी पहचान है-वाणी की। वह जब वचन बोलता है, तभी पता लग जाता है कि उसका वचन मूर्खतापूर्ण हैं या सुविचारपूर्ण ? कई मूरों की आदत होती है कि वे बहुत बकवास करते रहते हैं। अपने आपको बुद्धिमान सिद्ध करने के लिए वे किसी के न पूछने पर भी बोलते ही रहते हैं। एक बार उन्हें छेड़ लो, फिर उनके वचनों की गाड़ी ऐसी तेजी से छूटेगी कि बीच में रोकने पर भी नहीं रुकेगी। कोई व्यक्ति उनकी बातों से ऊबकर उन्हें रोकना चाहेगा तो वे उससे ही लड़ पड़ेगे और अंटसंट बकते रहेंगे । अत्यधिक और अप्रासंगिक बोलना मूखता का चिह्न है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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