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मूर्ख और तियंच को समान मानो
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(१) मूर्ख को किसी प्रकार की चिन्ता नहीं होती, (२) वह मात्रा का विचार किये बिना अत्यधिक भोजन करता है । (३) अत्यन्त वाचाल, (४) रात-दिन आलस्यवश सोया रहने वाला, (५) कार्य-अकार्य के विवेक से रहित, (६) जिस पर सम्मान और अपमान का कोई असर नहीं होता, (७) प्रायः नीरोग और (८) हट्टा-कटा। मूर्ख को पहचानने के लिए नीतिकार ने पांच चिह्न बताये हैं
मूर्खस्य पंचचिह्नानि गर्वी दुर्वचनी तथा ।
हठी चाप्रियवादी च परोक्तं नैव मन्यते ॥ मूर्ख के पांच चिह्न हैं—(१) घमंडी, (२) दुर्वचनी (कटुभाषी) (३) हठाग्रही (४) अप्रियवादी और (५) किसी हितैषी की बात न मानने वाला।
___ मूर्ख के और भी लक्षण विभिन्न विचारकों ने बताये हैं । एक दोहे में एक विचारक ने मूर्ख की निशानी बता दी है
मूरख माथे सींगड़ा, नहीं निशानी होय ।
सार-असार विचार नहीं, जन ते मूरख होय ॥ भावार्थ स्पष्ट है । जो व्यक्ति सार-असार का, कार्य-अकार्य का, हित-अहित का, भले-बुरे का, धर्म-अधर्म का कोई विचार नहीं करता, वह मूर्ख कहलाता है ।
मैं गान्धार नरेश मग्गति प्रत्येकबुद्ध की कथा के अन्तर्गत आये हुए एक दृष्टान्त के द्वारा इस बात को स्पष्ट कर दूं तो अच्छा रहेगा
जितशत्रु राजा को चित्रकला का बहुत शौक था। राजा ने इसके लिए एक अद्वितीय चित्रशाला बनवाने का विचार किया । उसने दूर-सुदूर देशों से अनेक नामी चित्रकारों को बुलाया, उनमें एक बूढ़ा चित्रकार भी था। शरीर उसका जरा-जीर्ण हो गया था, हाथ भी थर-थर काँपते थे, लेकिन उसकी कला में जादू-सा चमत्कार था। रंग और कूची लेकर जब वह चित्र बनाने बैठता तो अपनी पैनी सूझबूझ से बहुत ही सुन्दर एवं आकर्षक चित्र बनाता था। राजा ने प्रत्येक चित्रकार को चित्रशाला में अपना-अपना मनपसन्द चित्र बनाने के लिए बराबर-बराबर स्थान सौंप दिया।
___ इस बूढ़े चित्रकार की एक सुन्दर नवयौवना कन्या थी-'कनकमंजरी' । वह अपने पिता के लिए घर से चित्रशाला में भोजन लाया करती थी। एक बार वह कन्या घर से भोजन लेकर निकली थी कि रास्ते में एक घुड़सवार बहुत तेजी से घोड़ा
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