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७४. मूर्ख और तिर्यंच को समान मानो
धर्मप्रेमी बन्धुओ !
आज मैं एक निकृष्ट जीवन की चर्चा करना चाहता हूँ, जिसे मूर्ख-जीवन कहा जाता है। मूर्ख-जीवन को महर्षि गौतम ने तिर्यञ्च के समान बताया है। मूर्ख-जीवन इतना अधिक परवश, बन्धनग्रस्त, पाशविक, जड़ता से युक्त एवं अविकसित होता है कि वह पशु-पक्षी को भी मात कर देता है । इसीलिए महर्षि गौतम को कहना पड़ा
मुक्खा तिरिक्खा य समं विभत्ता -मूर्ख और तिर्यञ्च (पशु-पक्षी) समान कहलाते हैं ।
गौतमकुलक का यह ६५वाँ जीवनसूत्र है। मूर्ख को तिर्यञ्च के समान क्यों बताया गया है ? मूर्ख मनुष्य होते हुए भी तियंच-सा क्यों बन जाता है ? तिर्यञ्च का स्वभाव मूर्ख में कैसे प्रतिबिम्बित हो जाता है ? इन सब पहलुओं पर हम आज गहराई से चिन्तन करेंगे। मूर्ख : लक्षण और पहचान
वैसे देखा जाये तो मनुष्य का लक्षण मनन करके कार्य करने वाला है, इसलिए मनुष्य का मूर्ख होना मनुष्य के लक्षण के विपरीत है, तथापि कई मनुष्य ऐसे भी होते हैं, जिनकी बुद्धि या तो विकसित नहीं हुई है, या उन्होंने अपने बुद्धि-वैभव को बढ़ाने का प्रयत्न नहीं किया। इस कारण वे मनन-चिन्तन से कोसों दूर रहते हैं, वे अपनी बुद्धि से काम नहीं लेना जानते या नहीं लेना चाहते, साथ ही वे दूसरे बुद्धिमान् लोगों से भी कोई सलाह मशविरा नहीं करना चाहते, वे ही मूर्ख कहलाते हैं । आशय यह है कि मूर्ख मानव किसी भी कार्य-अकार्य का विवेक नहीं करता । संस्कृत के एक विद्वान् ने मूर्ख की चुटकी लेते हुए उसके ८ लक्षण बताये हैं
मूर्खत्वं सुलभं भजस्व कुमते ! मूर्खस्य चाष्टौ गुणाः, निश्चिन्तो बहुभोजकोऽतिमुखरो राविन्दिवं स्वप्नभाक् । कार्याकार्यविचारणाविरहितो मानापमाने समः,
प्रायेणाऽमयवर्जितो दृढवपुमूर्खः सुखं जीवति ॥ अर्थात्-हे कुबुद्धि ! मूर्खता सुलभ है, उसे अपना लो । मूर्ख के ८ गुण या लक्षण हैं, जिनसे वह सुख से जीता है
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