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अनवस्थित आत्मा ही दुरात्मा
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परन्तु जो व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक शक्तियों का विकास करना चाहता है, वह पूरी तीव्रता, तन्मयता और तल्लीनता के साथ अपनी साधना में लग जाता है, वह छोटे-से बालक से भी प्रेरणा लेकर अपनी साधना में आये हुए गतिरोध को समाप्त कर देता है।
___ महात्मा 'निष्कम्प' नगर के बाहर उपवन में रुके थे। जिज्ञासु साधक उनसे ज्ञानलाभ लेने पहुँचे । विद्रप नामक साधक भी इस अवसर का लाभ उठाने पहुँचा । विद्र प यों तो परमार्थ एवं आत्मकल्याण की साधना में रत था, किन्तु उसकी साधना में भौतिक वैभव बाधक बन रहा था, जिसके कारण गतिरोध हो गया था। अतः निष्कम्प महात्मा को प्रणाम करके उनके चरणों में उसने सविनय निवेदन किया और कहा"भौतिक वैभव छोड़ा भी नहीं जाता और बिना छोड़े यह साधना में बाधक बनता है, कृपया कोई मार्ग बतलाएँ ।”
___ महात्मा हंसकर बोले- "वत्स ! तुम्हारी साधना को अपच हो गया है । उसे हलका आहार दो।"
विद्रप इस रहस्यमय बात को समझ न पाए, अवाक् खड़े रहे । महात्मा ने उनकी मनःस्थिति समझकर कहा-“मस्तिष्क पर अधिक तनाव मत दो। अपने खेल में तल्लीन बच्चों की गतिविधि में रस लिया करो; वहीं तुम्हारे प्रश्न का व्यावहारिक उत्तर तुम्हें प्राप्त हो जाएगा।"
विद्रप मन ही मन विकल्पों के बहाव में बहने लगे-'बच्चों के खेल में इस प्रश्न का उत्तर ? कैसे पूछे ?' फिर भी वे साहस करके बोले-"भगवन् ! स्वयं अपने श्रीमुख से शंका-निवारण कर दें तो अतिकृपा होगी।"
महात्मा ने मुस्कराकर विद्रप की पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा- "वत्स ! शब्द की अपेक्षा क्रिया से जल्दी शिक्षण मिलता है, वह अधिक उपयोगी भी होता है। बच्चों के खेल से क्या शिक्षा मिलेगी? यह शंका तुम्हारे मानस में मंडरा रही है, परन्तु ध्यान रखो, यह संसार एक प्रकार का क्रीडांगण है, हम सब उसी क्रीडांगण में खेलने वाले प्रभु-पुत्र बालक हैं। ऋषि दत्तात्रेय को जब प्रकृति और जीव-जन्तुओं से शिक्षा मिल सकती है तो क्या तुम्हें बच्चों से शिक्षा न मिलेगी ? जाओ, मनोयोगपूर्वक प्रयास करो।"
विद्रप प्रणाम करके लौट आए । आदेशानुसार उन्होंने क्रीड़ारत बालक-बालिकाओं को देखना प्रारम्भ किया। प्रारम्भ में ही उन्हें अन्तःकरण में हलकापन महसूस हुआ। उन्होंने पाया कि बच्चे खेल के समय कितने तन्मय, कितने एकाग्र और तद्रप हो जाते हैं, उन्हें अपने खाने-पीने या अन्य आवश्यकताओं की भी सुध नहीं रहती। महात्मा विद्रप भी उसी प्रकार अपने साधनाप्रधान कार्यों में तन्मय होने लगे । प्रश्न का पूरा उत्तर अभी तक न मिला तो भी सहज शान्ति मिलने लगी । और एक दिन अचानक उनके गम्भीर प्रश्न का उत्तर उन्हें मिल गया। उन्हें मानो बच्चों के खेल से
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