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आनन्द प्रवचन : भाग ११
पुत्र के साथ भेदभाव रखें। आजकल आपने नारद को बहुत सिर चढ़ा रखा है । वह अहंकार में आकर पर्वत का अपमान करता रहता है ।"
।
क्षीरकदम्ब ने कहा – “मुझे तो ध्यान में नहीं कि मैंने पर्वत के साथ भेदभाव बरता हो और न ही आज तक नारद में अहंकार की मात्रा देखी है कहती हो तो मैं उसे अभी बुलाकर पूछता हूँ कि पर्वत को उसने क्यों तंग किया ?"
फिर भी तुम अपमानित एवं
पत्नी को इससे सन्तोष हुआ । क्षीरकदम्ब ने तुरन्त नारद को बुलाया और डाँटते हुए कहा - " नारद ! तुम पर्वत को क्यों तंग करते हो ? बोलो, आज तुमने वन में क्या उपद्रव किया था ?"
नारद चकित रह गया । वह समझ गया कि पर्वत ने गुरुजी से कोई शिकायत की है, इसी कारण गुरुजी नाराज हो रहे हैं । उसने नम्रस्वर में उत्तर दिया – “गुरुजी ! मैंने तो कोई उपद्रव नहीं किया, पर हाँ दो घटनायें अवश्य घटित हुई थीं ।"
गुरुजी- "कौन-सी घटनायें हुई ? बताओ तो ।"
नारद - "गुरुदेव ! आज वन में हमने देखा कि मोर नदी प्रवाह का जल पीकर वापस लौट रहे थे। तभी पर्वत ने कहा- ये आठों मोर हैं । मैंने कहा – एक मोर है, बाकी सात मोरनी हैं । जब स्वयं पर्वत ने पास जाकर देखा तो मेरी बात सच निकली । "
गुरुजी- "तुमने कैसे जाना, वत्स ! "
नारद -'
- '' गुरुजी ! यह तो साधारण सी बात थी । एक मोर पूंछ भीगकर भारी न हो जाये, इस कारण उलटा लौट रहा था, मैंने समझ लिया कि यह मोर है । बाकी सब मोरनी थीं । उनकी पूँछें छोटी थीं, उन्हें पूंछ भीगने का डर न था, इसलिए वे सीधी लौट रही थीं ।"
गुरु मन ही मुस्कराये और पूछा - " और दूसरी घटना ?"
नारद ने कहा - " नदी तट के एक स्थान को देखकर मैंने कहा – यहाँ से एक कानी हथिनी गई है । उस पर सफेद साड़ी पहने एक गर्भवती स्त्री बैठी है, वह आज ही प्रसव करेगी ।"
गुरुजी- "यह सब तुमने कैसे जाना ?"
भीगे हुए हैं, तभी निश्चय कर लिया कि वह हथिनी है । फिर
नारद- - "गुरुजी ! जब मैंने वन में देखा कि हाथी के पदचिह्न उसके मूत्र से देखा कि दांई ओर के वृक्ष टूटे हुए हैं, बाईं ओर के नहीं; तब समझ लिया कि वह कानी है । वह स्त्री मार्ग की नदी तट की रेत पर लेटी थी, वहाँ उसके उदर का निश्चान बन गया था । उसे देखने से अनुमान लगाया कि वह गर्भवती है और शीघ्र ही माँ बनने वाली है । असावधानीवश उसकी साड़ी का एक कोना कँटीली झाड़ी में उलझ गया
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