SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 324
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुत्र और शिष्य को समान मानो ३०३ था, वह सफेद था, इससे मालूम हुआ कि वह सफेद साड़ी पहने थी । प्रसव पीड़ा से व्याकुल है, इसका अनुमान तो इस पर से हुआ कि उस महिला ने अपनी साड़ी फटने दी, कांटों में उलझने दी । ये ही मेरे अनुमान के आधार हैं। इन दोनों घटनाओं को ही भाई पर्वत ने अपना अपमान समझ लिया है ।" गुरुजी मन ही मन नारद पर प्रसन्न एवं सन्तुष्ट थे । उनके अन्तर् से उसके प्रति आशीर्वाद बरस पड़ा। उन्होंने नारद को बाहर जाने की आज्ञा दी । तत्पश्चात् पत्नी से बोले - "भामिनी ! इसमें नारद ने तुम्हारे पुत्र का क्या अपमान कर दिया, बताओ तो ?” गुरु- पत्नी ने अपने पुत्र से पूछा तो उसने भी इन घटनाओं को सत्य बताया । अतः गुरु क्षीरकदम्ब ने अपनी पत्नी से कहा - "प्रिये ! बताओ, इसमें मैंने कौन - सा भेदभाव कर दिया ? तुम्हारा पुत्र मेरी शिक्षा पर ध्यान नहीं देता, वह व्यर्थं की शिकायतें करता है; और नारद ने उसी शिक्षा को ध्यान से हृदयंगम किया और अपनी सूक्ष्म प्रज्ञा से ये अनुमान लगा लिए ।" माता भी समझ गई कि उसका पुत्र अहंकारी और दुर्विनीत है । अपनी बुद्धि का समुचित प्रयोग नहीं करता । नारद के प्रति गुरुजी का अपने पुत्र से बढ़कर प्यार था । उसके विनयपूर्ण बुद्धिबल को देखकर उन्हें विश्वास हो गया कि पुत्र की अपेक्षा उनका शिष्य अच्छी बुद्धि वाला है, उनकी शिक्षा को सही ढंग से वही प्रचारित-प्रसारित कर सकता है । हाँ तो, मैं कह रहा था - सुयोग्य शिष्य पर गुरु की कृपा पुत्र से भी बढ़कर बरसती है । गृहस्थ- पुत्र से भी बढ़कर सुयोग्य शिष्य वैसे भी देखा जाये तो सद्गुरु अगर अपने शिष्य के प्रति पुत्रवत् आचरण करे तो सामान्य गृहस्थ-पुत्र और साधक - शिष्य दोनों में साधक शिष्य ही बढ़कर विनीत होता है । आवश्यक टिप्पणी में एक कथा है 1 एक राजा और एक आचार्य में एक बार परस्पर विवाद खड़ा हो गया । राजा ने कहा- राजपुत्र विनीत और बढ़कर होता है । आचार्य ने कहा- नहीं, राजपुत्र की अपेक्षा साधु-शिष्य अधिक विनीत और बढ़कर होता है । दोनों की परीक्षा करके निर्णय कर लेने का निश्चय हुआ । राजा ने अपने विनीत पुत्र को बुलाकर कहा - "बेटा ! यह देख आओ कि गंगा किस दिशा में बह रही है ?" राजकुमार बोला - " इसमें क्या देखना है गंगा पूर्वाभिमुख होकर बहती है।" फिर भी राजा ने बहुत कुछ समझा-बुझाकर गंगा नदी देखने भेजा । रास्ते में उसके मित्र मिले। उन्होंने पूछा - " कहाँ जा रहे हो, कुमार ?” राजपुत्र बोला" पिताजी ने एक बेगार सौंपी है, उसे करने जा रहा हूँ ।" यों कहकर बीच में से वापस लौट आया, और राजा से कहने लगा - " मैं वहाँ जाकर देख आया । गंगा पूर्वाभिमुख - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy