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आनन्द प्रवचन : भाग ११
से पतित जीवों और साधना में प्रतिकूल द्रव्यादि के स्वरूप को समझाकर उनसे बचाने का प्रयत्न करता है तथा द्रव्यादि को अपने लक्ष्य में बाधक न बनने देकर सन्मार्ग पर चलने में सहयोग देता है; वही सच्चा सद्गुरु है ।
जैसे दीपक प्रकाश प्रदान करके उसके बदले में अन्य पदार्थों की अपेक्षा नहीं रखता, और प्रकाश पाने वाला भी दीपक से प्रकाश के सिवाय और कुछ आशा नहीं रखता, वैसे ही गुरु को भी शिष्यों से ज्ञानादि प्रदान करने के बदले भौतिक पदार्थों को पाने की वांछा नहीं करनी चाहिए । शिष्य को भी गुरु से आत्मिक उन्नति में सहयोग के सिवाय अन्य अपेक्षा नहीं रखनी चाहिये । सच्चा गुरु शिष्य का कल्याण चाहता है, और सुशिष्य गुरु की आज्ञा का पालन करता है, उनके मार्गदर्शन के अनुसार चलता है । गुरु की सेवा और विनय के द्वारा वह उनके चित्त को प्रसन्न करके आत्मकल्याण का सुपथ प्राप्त करता है ।
एक उदाहरण लीजिये
कुछ गुरुभाई परस्पर ज्ञान चर्चा कर रहे थे। इतने में एक शिष्य ने आकर खबर दी - “ दौड़ो-दौड़ो ! गुरुजी को बिच्छू ने काट खाया, डंक मारा उस जगह भयंकर वेदना हो रही है ।" सभी शिष्य ज्ञान चर्चा अधूरी रखकर उसके पीछे-पीछे भागे । वहाँ जाकर देखा - गुरुजी अंगुली पपोल रहे हैं । बिच्छू के डंक की वेदना से उनका हाथ काँप रहा था। एक शिष्य ने एक बड़े बिच्छू को लकड़ी से दबा रखा था । दूसरे शिष्य तो गुरुजी की परिचर्या करने लगे । परन्तु जिसने बिच्छू को लकड़ी से दबा रखा था, उसे बिच्छू पर खूब क्रोध आया। उसने सोचा - गुरुजी सरीखे समर्थ ज्ञानी और पवित्र विभूति को बिच्छू ने काटा ही क्यों ? ऐसी लोक - मान्यता है कि सौ अपराध हों, तब बिच्छू काटता है, और हजार अपराध हों, तब सांप | पर इन सात्त्विक प्रकृति के महापुरुष ने कौन-सा अपराध किया था कि इन्हें बिच्छू ने काटा ? गुरुजी के डंक मारकर तो इसने अक्षम्य अपराध किया है । यों सोचकर इसने बिच्छू की पूँछ एक डोरी से बाँध दी और आश्रम के एक कमरे के बीचों-बीच लटका दिया ।
।
बिच्छू का जहर उतरते ही गुरुजी कुछ स्वस्थ हुए। गुरुजी उस कमरे में गये जहाँ बिच्छू लटकाया हुआ था की ओर खिंचा, उसके प्रति वात्सल्य दृष्टि करके गुरुजी " अरे ! इस बेचारे को ऐसी कठोर सजा !" शिष्य ने गुरुजी ! आपको डंक मारने का महा अपराध यह कर बैठा भोगना ही चाहिए ।"
कोई कार्य याद आते ही
गुरुजी का ध्यान उस बिच्छू
वहाँ खड़े शिष्य से कहा
ने
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गुरुजी- “ अरे भाई ! इसे अपनी रक्षा के लिये डंक ही शायद यह मेरे हाथ से दब गया हो, पर यह तो यों ही मेरा नाश करने के लिए आया है, इसलिए इसने स्व-रक्षार्थ
क्रुद्ध भाव से कहा - " पर है, उसका परिणाम तो इसे
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मिला है । अनजान में समझता है कि यह हाथ डंक मारा होगा । बिच्छू
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