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________________ २७६ आनन्द प्रवचन : भाग ११ छोड़कर साधु-जीवन में शिष्य-शिष्या, भक्त-भक्ता, विचरण-क्षेत्र, स्थानक-उपाश्रय, वस्त्रपात्र, उपकरण आदि पर सावधानी न रखे तो फौरन मोह-ममत्व चिपक जाता है । फिर वह चालाकी से उस सम्बन्ध में सफाई देता रहता है, यह मेरा नहीं, संस्था का है, सम्प्रदाय का है, समाज या संघ का है । जो हृदय से ममत्व छोड़ देता है, वह तो इस ममता की वैतरणी को पार जाता है, लेकिन जो इस ममता को–साधु-जीवन में आई हुई ममता-मूर्छा को खदेड़ता नहीं, बार-बार उसमें लिपटता रहता है, वह माया के मायाजाल में ही भटकता रहता है। एक ऐतिहासिक उदाहरण द्वारा मैं अपने विषय को स्पष्ट कर दूं तो अच्छा रहेगा एक राजा वृद्ध हो गया था। उसने अपने पूर्वजों के आदर्श के अनुसार जीवन का अन्तिम समय त्याग में बिताने का निश्चय किया। राजा ने अपना निश्चय राजकुमार मंत्री आदि सबको सुनाया। इससे उन्हें जरा आघात भी लगा। राजकुमार ने प्रार्थना की-"पिताजी ! वैसे तो आपका विचार उत्तम है, पर उसके लिए घर-बार और कटम्ब-परिवार को छोड़कर जाने की क्या आवश्यकता है ?” राजा ने कहा-''बेटा! यहाँ रहने से फिर वही मोह-ममता लग जायेगी, परिवार की सारी जिम्मेवारी निभानी पड़ेगी तथा राज्य का त्याग करने पर भी यदा-कदा बरबस राज्य-कार्य में भाग लेना पड़ेगा। इसलिए मैं तुम्हें घर-बार तथा राज्यकार्य सब कुछ सौंपकर जाना चाहता हूँ।" मंत्री तथा राजदरबारियों को भी राजा का इस प्रकार सर्वस्व त्याग कर जाना अखरता था। परन्तु राजा के दृढ़निश्चय के आगे सभी को झुकना पड़ा। विदाई का दिन निश्चित हो गया। राजा ने राजकुमार का विधिवत् राज्याभिषेक करके उसे राज्य सौंप दिया। राजा ने राजकुमार तथा मंत्री आदि के बहुत आग्रह के बावजूद अपने साथ सिर्फ एक सेवक और एक सामान लदा हुआ घोड़ा ले चलने का निश्चय किया। स्वयं पैदल चलकर नगर के बाहर आया। राज-परिवार, राजकुमार, मंत्री आदि सब दरबारियों और प्रजाजनों ने अश्र पूर्ण नेत्रों से अपने प्रिय राजर्षि को भावभीनी विदा दी। राजा सबको आशीर्वादसूचक दो शब्द कहकर आगे बढ़ गये । चलते-चलते दोपहर को राजर्षि ने एक छायादार वृक्ष के नीचे विश्राम किया। सेवक ने घोड़े पर से राजर्षि का सादा बिछौना निकाला और वहीं पेड़ के नीचे बिछाकर आराम करने को कहा । स्वयं बर्तन निकालकर भोजन बनाने लगा। राजर्षि का भोजन बन रहा था, तभी एक किसान आया। उसने पेड़ के नीचे जगह साफ करके अपना अंगोछा बिछाया और हाथ का तकिया बनाकर सो गया । करीब आधा घंटा सोकर वह उठा और चल दिया। राजर्षि ने चिन्तन किया-ओहो ! यह किसान तो यों ही एक वस्त्र बिछाकर सो गया, फिर मुझे गद्दे-तकिये की क्या जरूरत है ? नौकर से कहा-“माधव ! हम नाहक ही गद्दा-तकिया लाये, इन्हें वापस ले जा।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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