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________________ आनन्द प्रवचन : भाग ११ (१) आयाहिणं पयाहिणं करेमि - दाहिनी ओर से तीन बार वन्दनीय साधुवर के चारों ओर प्रदक्षिणा करता हूँ । २७२ इसका रहस्य यह है कि मैं वन्दनीय पुरुष को मन-वचन काया से सर्वथा स्वीकार करता हूँ । (२) वंदामि - मैं अभिवादन और स्तुति करता हूँ । (३) नम॑सामि – नमस्कार करता हूँ। दोनों हाथ जोड़कर मस्तक के साथ स्पर्श करना नमस्कार है । (४) सक्कारेमि - मैं वन्दनीय पुरुष का सत्कार करता हूँ । उनके उत्तम कृत्यों का समर्थन करना सत्कार है । उनके वचनानुरूप कार्य करना भी सत्कार है । (५) सम्माणेमि - मैं वन्दनीय पुरुष का सम्मान करता हूँ। उनकी प्रतिष्ठा करना, उनके प्रति श्रद्धा-भक्ति प्रकट करना सम्मान है । (६) कल्ला - हे वन्दनीय पुरुष ! आप कल्याण रूप हैं, ऐसा मानना । (७) मंगलं - हे वंदनीय पुरुष ! आप मंगलरूप हैं, ऐसा समझना । (८) देवयं - हे वन्दनीय गुरुवर ! आप देवतारूप हैं, यों मानना । (e) चेइयं - हे वंदनीय पुरुष ! आप ज्ञानस्वरूप हैं, ज्ञानमूर्ति हैं, पूजनीय हैं । I (१०) पज्जुवासामि – आपकी सब प्रकार से मैं सेवा-भक्ति, उपासना करता हूँ । सत्कार, सन्मान ये मनोयोग, कल्याण से लेकर चार शब्द वचन योग, पर्युपासना कायायोग से - इन सब प्रक्रियाओं के सहित वन्दना ही वास्तविक वन्दना है । कोरा मस्तक झुका लेना या मुँह पर थोड़ी बहुत प्रशंसा कर लेना, वन्दना का निष्प्राण स्थूल रूप हो सकता है, वन्दना में प्राण तो उपर्युक्त प्रक्रिया के पूर्ण करने से ही आता है । आज अधिकांश धनी-मानी सत्ताधीश लोग जीवित और तेजस्वी साधु के पास पहुँचते नहीं, पहुँचते भी हैं तो ऊपर की प्रक्रिया सहित वन्दना नहीं करते । वे संत की पूजा करते हैं, परन्तु संत की बात को त्याग तप से युक्त प्रेरणा को नहीं मानते । दुनिया में जीवित जागृत एवं तेजस्वी साधुओं का जीते-जी अपमान हुआ है, उनके मरने के बाद उनकी पूजा-प्रतिष्ठा की गई है । इसी कारण प्रण से वन्दना नहीं हुई । दुनिया इसीलिए पिछड़ी हुई है, । इसीलिए महर्षि गौतम को कहना पड़ा - साहू ते अभिवंदियव्वा Jain Education International For Personal & Private Use Only सच्चे वन्द्य पुरुष की प्राणधर्म-विमुख है; प्रदर्शनप्रिय www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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