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वन्दनीय हैं वे, जो साधु
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उसके सामने भी अपने अन्तर् का पट खोल देता है। कई बार चालाक लोग संत की इस सरलता से लाभ उठाते हैं, अपना स्वार्थ सिद्ध कर लेते हैं और संत को फंसा देते हैं । बुरे कर्म करते हैं दुष्ट लोग, पर नाम ले लेते हैं—संत का और स्वयं उसमें से निकलकर संत को फंसा देते हैं। इस सरलभाव से संत जो कुछ कह देते हैं, वह प्रायः होकर रहता है । इसीलिए ऐसे सरलचेता साधु को वचनसिद्धि हो जाती है। मृदुसाधु जाति, कुल, बल आदि से हीन लोगों का तिरस्कार कदापि नहीं करता।
साधुता तभी वन्द्य होती है, जब उसके मन, वचन, काया में सरलता हो । कपट, झूठ, दम्भ आदि से लोकश्रद्धा समाप्त हो जाती है।
आपको यह तो बहुत पक्का अनुभव है कि काष्ठनिर्मित हंडिया आँच पर नहीं चढ़ती । चढ़ायी जाएगी तो वह फट जाएगी। इसी प्रकार कपट करने वाले व्यक्ति के चक्कर में कोई आते नहीं, उससे मन फट जाता है। कपट एवं झूठ-फरेब करने वाला साधु हृदय से वन्दनीय नहीं होता।
इसके पश्चात् साधु की वन्दनीयता के लिए शौच गुण का होना परम आवश्यक है। शौच का अर्थ है-पवित्रता । मन, वचन और काया–तीनों में पवित्रता होगी, वही साधु वन्दनीय होगा। मन से वह जरा-सा भी बुरा विचार किसी के प्रति न रखे। मन से बुरा चिन्तन करते ही मन दूषित हो जाता है। इसी प्रकार वचन से भी गंदे, अश्लील' शब्द या किसी भी हत्या करने, चोरी कराने या हैरान करने के शब्द कतई न निकलें । न ही समाज या परिवार में फूट डालने को सलाह किसी को दे समाज या संघ में फूट डालना साधु के लिए बहुत बड़ा अपराध है। इसलिए वचन भी उसका पवित्रता से ओतप्रोत होना चाहिए । साथ ही काया से कोई भी चेष्टा या प्रवृत्ति ऐसी न हो, जो उसकी काया को अपवित्र कर दे। पुण्य कार्य काया को पुनीत करता है, जबकि पाप कार्य काया को दूषित । हिंसा, झूठ, चोरी, जारी, लूट-खसोट अथवा बेईमानी, ठगी, धूर्तता आदि पाप काया सम्बन्धी शुचिता-पवित्रता को नष्ट कर डालते हैं। इसलिए शौच गुण साधु के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। उसका जीवन पूर्णतया पवित्र होना चाहिए। साधु में निर्लोभता का गुण भी पवित्रता-शुचिता से सम्बन्धित है।
___ इसके पश्चात् साधु को धन्य और वन्द्य बनाने वाला गुण है-सत्य । असत्य और दम्भ साधु-जीवन के भयंकर दूषण हैं, ये दोनों दुर्गुण साधु-जीवन को पतित, अपयशगामी, पापलिप्त और नरकगामी बना देते हैं। इसलिए सत्यता का गुण साधुजीवन में आवश्यक है। शास्त्र में साधु के २७ गुणों में से तीन गुण बड़े महत्त्वपूर्ण बताए हैं
भाव सच्चे, करण सच्चे, जोग सच्चे । साधु भाव से सत्याचरणी होना चाहिए, करण यानी साधन से भी या
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