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________________ अनवस्थित आत्मा ही दुरात्मा ७ अमर है, वह कभी मरता नहीं, मैं अपनी आत्मा में ही अवस्थित हूँ। शरीर, इन्द्रिय आदि पर या किसी भौतिक पदार्थ पर मेरी आसक्ति नहीं है, उनकी चिन्ता मैं नहीं करता । वे सब नाशवान हैं, एक दिन वे नष्ट होंगे ही; चाहे वे शीघ्र ही नष्ट हो जाएँ । हदय से स्वागत है मृत्यु का।" यह है, आत्मा की अवस्थित दशा का ज्वलन्त उदाहरण ! जो व्यक्ति आत्मा के प्रति वफादार न होकर शरीर, इन्द्रियाँ, मन आदि का गुलाम बन जाता है, भौतिक पदार्थों के प्रति आसक्त हो जाता है, अपनी आत्मा का कोई विचार नहीं करता, वह अनवस्थित है, यानी आत्मा में अवस्थित नहीं है । ___अनवस्थित व्यक्ति आत्मा की आवाज नहीं सुनता; क्योंकि आत्मदेवता के प्रति उसे श्रद्धा-भक्ति नहीं होती, वफादारी नहीं होती । जिसका लक्ष्य ही आत्मा का हित और विकास नहीं है, वह व्यक्ति आत्मा की आवाज की ओर ध्यान ही क्यों देगा ? परन्तु आत्मा में अवस्थित एवं वफादार व्यक्ति को स्वतः आत्मा की आवाज सुनाई देती है, क्योंकि वह सावधान होकर उसकी ओर ठीक-ठीक उन्मुख होता है । आत्मा अपने प्रति वफादार व्यक्ति को अपने प्रति सावधान एवं सम्मुख करने को आवाज देती है । जब कभी अकस्मात् कोई आवाज आती है, तो बाहोश साधक यह समझ लेता है कि मेरी अन्तरात्मा ने यह आवाज दी है और उस आवाज का केवल एक ही तात्पर्य होता है-“अरे भाई ! अपने को समझ, मुझे पहचान, तू अपना पथ छोड़कर किधर जा रहा है ?" यदि ऐसी आवाज आती है तो अवस्थित व्यक्ति उत्साहपूर्वक तत्काल अपने आपका विश्लेषण करके जहाँ भी गलती होती है, तुरन्त उसे सुधार लेता है और आत्मा में पुनः सुदृढ़ता से स्थित हो जाता है। इस प्रकार आत्मा की आवाज के अनुसार चलने वाला व्यक्ति अवस्थित होकर अपनी आत्मा का शीघ्र विकास कर लेता है परन्तु जो अनवस्थित है वह आत्मा की आवाज की परवाह न करके कुमार्ग पर चल पड़ता है, अन्त में आत्मा को दुरात्मा बनाकर अनेक दुःखों में डाल देता है । अपने जीवन को सार्थक नहीं कर पाता। जो व्यक्ति जिस कार्य को अन्तरात्मा की साक्षी से करता है, वह अपने प्रत्येक कार्य के साथ अपनी अन्तरात्मा से पूछेगा कि तू जो कुछ कर रहा है, वह किस उद्देश्य से और क्यों कर रहा है ? जो इस प्रकार अन्तरात्मा से पूछकर कार्य करता है, वह आत्मा में अवस्थित है। इसलिए वह प्रत्येक कार्य मनोयोगपूर्वक करता है, जिससे कार्य में सफलता मिलती है। ऐसे अवस्थित आत्मा को कार्य करते समय और कार्य करने के पश्चात् भी आल्हाद का अनुभव होगा। इसके विपरीत जो व्यक्ति अन्तरात्मा की साक्षी से कार्य नहीं करता, आत्मा है की उपेक्षा कर देता है, जैसे-तैसे उद्देश्यरहित कार्य करता है, उसका मनोयोग कार्य . में नहीं होगा। वह किसी भी कार्य को बोझ समझकर ऊपरी मन से करेगा, For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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