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________________ ६ आनन्द प्रवचन : भाग ११ अवस्थित आत्मा सदात्मा, तब सहसा यह प्रश्न उठता है कि आत्मा कब अनवस्थित दशा में होता है, कब अवस्थित दशा में ? आत्मा जब अपने गुणों में, अपने स्वभाव में, अपने धर्म में स्थित रहता है, तब तक वह अवस्थित कहलाता है और जब वह अपने गुणों को छोड़कर परभावों, विभावों, विषय-कषायादि या राग-द्वष-मोह आदि विकारों में फंस जाता है, अपने स्वभाव और धर्म को छोड़कर जब वह परभाव और परधर्म में लुब्ध हो जाता है, तब उसकी दशा अनवस्थित कहलाती है और अनवस्थित दशा में आत्मा दुरात्मा बन जाता है । मिश्र में एक सन्त हो चुके हैं, हिलेरियो। जब वे १५ वर्ष के थे तभी उन्हें अपने पिता के प्यार से वंचित हो जाना पड़ा । इस छोटी-सी उम्र में हिलेरियो को अपने आत्मस्वभाव में स्थित होने की धुन लगी। वह सम्पत्ति को अपने आत्मभावों से विचलित और चित्त को चंचल बनाने वाली समझते थे इसलिए पिता के द्वारा छोड़ी हुई सारी सम्पत्ति उन्होंने निर्धनों और जरूरतमंदों में वितरित कर दी, स्वयं ने यह निश्चय कर लिया कि मैं आत्मस्वभाव में स्थित होने के लिए एकान्त मरुभूमि में रहकर साधना करूंगा । जिस स्थान को उन्होंने पसंद किया, वह स्थान समुद्रतट से दूर और झाड़-झंखाड़ों के बीच में था। वहाँ आवागमन के साधन सुलभ न थे । सदैव डाकुओं का भय बना रहता था, इसलिए वहां दिन में भी कोई व्यक्ति अकेले जाने का साहस नहीं करता था। हिलेरियो के कितने ही मित्रों ने उन्हें उस स्थान पर न रहने की सलाह दी, कहा कि लूट-पाट और मार-काट के लिए वह स्थान बदनाम हो चुका है, अतः आपको वहाँ नहीं रहना चाहिए । परन्तु हिलेरियो ने वहाँ रहकर अपना स्वभाव निर्द्वन्द्वता का बना लिया था, अपने स्वभाव में अवस्थित रहने का ध्यान, मौन, एकाग्रतापूर्वक चिन्तन का अभ्यास कर लिया था, इस कारण महान् आत्मा हिलेरियो का आत्मबल बहुत बढ़ गया था। इस कारण वे मृत्यु से भी नहीं डरते थे। एक दिन मरुस्थल में महान् आत्मा हिलेरियो को कुछ व्यक्तियों ने घेर लिया और पूछा-"तुम इस जंगल में अकेले रहते हो, यदि कोई तुम्हें परेशान करे और तुम्हारा सामान छीन ले तो तुम क्या करोगे ?" संत हिलेरियो ने मुस्कराकर कहा-"मेरे पास सामान है ही क्या ? पहनने के दो कपड़े और पानी पीने के लिए एक कमण्डल ही है। यदि तुम्हें उनकी भी आवश्यकता हो तो मैं सहर्ष देने को तैयार हूँ।" "और यदि तुम्हें कुछ डाकू अपने कार्य में बाधक समझकर जान से ही मार दें तो तुम सहायता के लिए किसे पुकारोगे ?" संत हिलेरियो बोले-"जान से मारना चाहें तो मार दें, मैं मरने से डरता नहीं । मैं अपने आत्मध्यान में यह निश्चित रूप से जान चुका हूँ कि आत्मा अजर For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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