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________________ वन्दनीय हैं वे, जो साधु २५७ यता उसके गुणों के कारण है, न कि आडम्बरों, प्रसिद्धियों या चमत्कारों से ! केवल जादू-टोना करने या हाथ की सफाई करने वाले अगर वन्दनीय हों तो बाजीगर या जादू का खेल दिखाने वाले भी वन्दनीय होने चाहिये । ऐसे कई सयाने हैं, जो यंत्र, मंत्र, तंत्र, गंडा-ताबीज, झाड़-फूंक आदि का प्रयोग करते हैं, लोगों को अपनी विद्या का चमत्कार दिखाते हैं, किन्तु इसके कारण वे वन्दनीय कैसे हो सकते हैं ? यदि वे वन्दनीय नहीं तो केवल यंत्र-मंत्रादि का चमत्कार बताने के कारण ही कोई साधूवेषी वन्दनीय कैसे हो सकता है ? कई पेशेवर योगी लोग अपने यौगिक केन्द्र खोलकर यौगिक प्रयोग करते हैं, दिखाते हैं, सिखाते हैं, योगासन आदि के द्वारा चिकित्सा करते हैं और इस प्रकार योग के नाम पर धनसंग्रह करने वाले देश-विदेश में भ्रमणशील योगी वन्दनीय कैसे हो सकते हैं ? त्याग, तप, संयम, महाव्रत आदि होने पर ही उन्हें वन्दनीय कहा जा सकता है, केवल यौगिक क्रियाओं के प्रदर्शन से नहीं। ___कोई साधु अच्छा भाषण करता है, लोगों से पैसा निकलवाने का अच्छा तरीका जानता है, या सम्भाषण-कला में प्रवीण है; परन्तु उसमें साधुता के गुण नहीं हैं तो केवल भाषण-सम्भाषण से ही उसे वन्दनीय कहा जा सकता है ? अगर कोरी भाषणकला या सम्भाषण में प्रवीणता के कारण ही किसी को वन्दनीय कहा जायेगा तो जितने भी प्रोफेसर, वकील आदि लेक्चरार हैं, वे सब वन्दनीय कहलायेंगे । इसी प्रकार यदि कोई साधु केवल शास्त्रों की व्याख्या करता है, शास्त्रों पर शोध-कार्य करता है, परन्तु अगर उसमें साधुता के लक्षण नहीं हैं, तो इतने मात्र से वह वन्दनीय नहीं हो सकता। यदि शास्त्रों की व्याख्या करने या शोध-कार्य करने मात्र से ही किसी को वन्दनीय माना जायेगा तो रिसर्च स्कालरों (शोध-कार्यकर्ताओं) या शास्त्र-व्याख्याताओं को भी वन्दनीय कहना पड़ेगा। सिर्फ अच्छे लेख लिखने मात्र से भी कोई साधुवेषी वन्दनीय नहीं हो सकता, अगर सुलेखक को ही वन्दनीय माना जायेगा तो गृहस्थवर्ग में बहुत से ऐसे विद्वान लेखक हैं, जिनकी लेखनी में जादू है, बल है, जिनकी कविताओं में कमनीयता है, हृदयस्पर्शी प्रभाव है, परन्तु केवल कविता करने मात्र से कोई साधु वन्दनीय नहीं हो जाता । गृहस्थों में भी अच्छे-अच्छे कवि हैं, इसी से क्या वे वन्दनीय हो सकते हैं ? । ____ इसी प्रकार कोई साधु बहुत अधिक विज्ञापन करता है, अपनी प्रसिद्धि के लिए, अपनी शोहरत के लिए, बड़े-बड़े पोस्टर लगवाकर जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है । अनेक मिनिस्टरों या राजनेताओं से मिलकर उनको अपनी वाणी-कौशल से प्रभावित करता है, परन्तु यह सब करता है, वह धर्मशासन-प्रभावना के नाम पर; मगर अन्दर प्रायः होती है यश-कीर्ति की भूख, जिसे वह इस प्रकार मिटाता है। साधुता के नाम पर प्रपंच, छलछिद्र, लोकरंजन, प्रदर्शन दिखावा एवं आडम्बर करते हैं । बड़े-बड़े लोगों को बुलाकर अपने मंच पर भाषणों का आयोजन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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