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आनन्द प्रवचन : भाग ११
है, न ही वह युग के पेचीदा प्रश्नों का समाधान कर सकता है, न युवापीढ़ी को धर्म की
और आकृष्ट कर सकता है। उसे इसके लिये वैयक्तिक और सामाजिक जीवन में समतायोग की साधना करनी-करानी है । वह तभी वर्तमान की कुण्ठाओं, पीड़ाओं और विघ्न-बाधाओं से समाज को मुक्त कर सकता है, जबकि वह स्वतन्त्रचेता, प्रबुद्ध एवं व्यापक दृष्टिसम्पन्न, सत्ता और धन की गुलामी से मुक्त एवं चारित्रनिष्ठ हो । तभी वह पण्डित महर्षि गौतम की भाषा में समाज, राष्ट्र और विश्व के, धर्मसम्प्रदायों के, जातियों के और संस्कृति के अटपटे प्रश्नों का समाधान कर सकेगा, तभी वह प्रष्टव्य होगा। महर्षि गौतम ने ऐसे ही पण्डितों के लिये इस जीवनसूत्र में निर्देश किया है
जे पण्डिया ते खलु पुच्छियव्वा
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