________________
२५०
आनन्द प्रवचन : भाग ११
सुना है, अब तक सुन रहा हूँ, फिर भी हृदय नहीं भीगा। पण्डितजी ! क्या कारण है, इसका ?"
पण्डितजी सुनकर विचार में पड़ गये। वे क्या उत्तर देते, इस प्रश्न का? पण्डितजी ने मौन रहने में ही अपना श्रेय समझा। किन्तु राजा प्रश्न का उत्तर लिए बिना कैसे पिंड छोड़ता ! राजा ने कहा-"आपको इस प्रश्न का उत्तर देना ही होगा, अन्यथा कल से आपसे धर्मकथा-श्रवण करना बन्द कर दूंगा। आपकी दक्षिणा भी बन्द हो जाएगी।"
___ यह सुनते ही पण्डितजी के देवता कूच कर गये । सोचने लगे-उत्तर न दंगा तो आजीविका भी बन्द हो जाएगी । अतः पण्डित बोले-“राजन् ! इस प्रश्न का उत्तर देने में कुछ समय चाहिए ।"
राजा-"अच्छा, आज नहीं तो कल ही सही, पर इस प्रश्न का उत्तर अवश्य चाहिए।"
चिन्ता में डबे पण्डितजी घर आये। आजीविका जाने का भय सिर पर सवार था। उनका मन आज किसी में भी कार्य नहीं लग रहा था। उनकी व्यग्रता छिपाने पर भी छिप नहीं रही थी। पुत्र ने पिता को चिन्तातुर देख पूछा-"पिताजी! आज आप दुःखी और चिन्तित क्यों हैं ?" पण्डितजी ने पहले तो कुछ नहीं कह कर बात टालनी चाही परन्तु अन्त में, पुत्र के अत्याग्रह पर उन्हें कहना पड़ा। उन्होंने अपनी सारी व्यथा-कथा कह सुनाई । पुत्र ने एकाग्रचित्त होकर बात सुनी। कुछ देर सोचकर हर्ष से बोला-"पिताजी ! कल मुझे राजभवन में ले चलना, मैं आपके आशीर्वाद से राजा के इस प्रश्न का उत्तर आसानी से दे सकूँगा।" पण्डितजी का पुत्र की बुद्धि पर विश्वास था। वे पुत्र की ओर से आश्वासन पाकर निश्चिन्त हो गये।
दूसरे दिन पण्डितजी अपने पुत्र को लेकर राजभवन में जाने लगे। पुत्र ने मजबूत रस्से के दो पिंड साथ में ले लिये। पण्डितजी को पुत्र के इस आचरण से कुतूहल तो हुआ, पर वे बोले कुछ नहीं। राजभवन पहुँचकर पण्डितजी ने राजा को आशीर्वाद दिया। राजा ने कहा-“पहले मेरे प्रश्न का उत्तर दीजिए; तब मैं शास्त्रश्रवण करूंगा।" पण्डितजी ने कहा-"राजन् ! आपके प्रश्न का उत्तर मेरा पुत्र देगा।"
राजा ने ब्राह्मण-पुत्र की ओर देखा, आँखें तरेरकर बोला-“यह छोकरा मेरे प्रश्न का उत्तर देगा ?"
ब्राह्मण-पुत्र-“राजन् ! प्यासा व्यक्ति सरोवर छोटा है या बड़ा, यह नहीं देखता; इसी प्रकार जिज्ञासु व्यक्ति को भी अपनी जिज्ञासा को तृप्त करने से प्रयोजन रहता है, छोटे-बड़े व्यक्ति से नहीं।" राजा ने साश्चर्य कहा-"तुम तो बड़े पण्डित-से लगते हो, अच्छा दो तो उत्तर ।" ब्राह्मण-पुत्र निर्भयता से आगे बढ़कर बोला
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org