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आनन्द प्रवचन : भाग ११
ये और इस प्रकार के उदाहरण यह बताते हैं कि पण्डित शब्द ब्राह्मण का पर्यायवाची बन गया । ब्राह्मण प्रायः अध्यापक का कार्य करते थे, इसलिए पण्डितजी अध्यापक का विशेषण बन गया। पण्डित शब्द के विकृत रूपान्तर
यों तो पण्डित शब्द बहुत पुराना है। इसकी व्युत्पत्ति पण्डा शब्द से हुई है। बृहत्कल्पसूत्रवृत्ति में इस प्रकार का अर्थ किया गया है
'पण्डा बुद्धिः सा संजाता अस्येति पण्डितः पण्डा कहते हैं-बुद्धि को। उससे जो युक्त हो वह पण्डित है।
कालान्तर में इसके नानाविधरूप चल पड़े। पांडे, पंडा, पांडेय, पंडत आदि अपभ्रश रूप भी धीरे-धीरे जन-जन में घुल-मिल गए। जैसे-जैसे शब्द में टूटफूट होती गई, वैसे-वैसे इसके अर्थ में भी विकृति आती रही । पण्डित में से 'इ' का लोप होकर पंडत हो गया। 'इ' बीजाक्षर कोष के अनुसार 'अग्नि' का प्रतीक वर्ण है। इसका मतलब यह हआ कि पण्डित में से 'इ' रूप अग्नि' के खण्डित होते ही उसमें से आचरण की गर्मी निकल गई वह ठंडा-शीतल हो गया। दूसरे शब्दों में कहें तो पण्डित की साख लोक-जीवन में घट गई, वह लालच से घिर गया। 'पंडत' का अर्थ हो गया रटे-रटाए शब्दों को दुहराने वाला किताबी प्राणी । अर्थात जो बोलता बहत है पर करता नहीं है । जिसकी कथनी-करनी एक नहीं है । वह केवल शास्त्रों का पिष्टपेषण करने वाला रह गया, उसमें अर्थज्ञान का विकास नहीं हुआ। पण्डित शब्द का मेरुदण्ड : बुद्धि
पण्डित शब्द का मेरुदण्ड बुद्धि है । प्रयोग के अनुसार बुद्धि के विभिन्न रूप प्रचलित हैं। तत्त्वज्ञान में लगाने वाली बुद्धि पण्डा है । जिसमें पण्डा हो वह पण्डित है । धारण करने वाली बुद्धि को मेधा कहते हैं। जिसमें मेधा हो, वह मेधावी है। आत्म-कल्याण में लगने वाली बुद्धि को ज्ञान कहते हैं। विभिन्न कलाओं और शिल्प में प्रयत्न बुद्धि विज्ञान कहलाती है। विद्वान् की अपेक्षा पण्डित का क्षेत्र और दायित्व व्यापक है। किसी भी शास्त्र-विशेष में पारंगत होने से उसे विद्वान् कहा जा सकता है, पण्डित नहीं । पण्डित होने के लिए शास्त्र ज्ञान के साथ-साथ चारित्रिक गुणों का होना आवश्यक है । सीखने की कला में प्रवीण होना विद्वत्ता का चिन्ह है, जबकि अपने ज्ञान और जीवन से दूसरों को सिखाने की क्षमता प्राप्त करना पाण्डित्य की ओर गमन है। आज के पण्डित
___ आज का पण्डित नामधारी शास्त्र की व्याख्या तो अच्छी करता है किन्तु उसका वह ज्ञान जीवन से जुड़ा हुआ बहुत कम है। इसका अर्थ यह हुआ कि पण्डित प्रायः शास्त्रगर्जन से सम्बन्धित है, उसका जीवन आचरण से कटा हुआ है महाभारत वनपर्व में स्पष्ट कथन है
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