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जो धार्मिक, वे ही सेवापात्र २३७ गला घोंटकर जहाँ चाहे भाग सकता था पर जहाँ धार्मिकता का प्रश्न है, वहाँ न तो पर का हनन होता है, न स्वयं को। इसमें धर्मात्मा के ४ लक्षण पूर्णतया मौजूद हैं(१) कभी प्रमाद न करना, (२) प्रतिदिन परमात्म-प्रार्थना करना, (३) पुरुषार्थपरायणता एवं (४) प्रामाणिकता पर दृढ़ रहना।
महेश कौल डी० एस० पी० के कथन को ध्यानपूर्वक सुन रहा था। दो मिनट बाद ही उसे रक्त की के हुई और उसी में उसकी इहलीला समाप्त हो गई। तमाम पुलिस स्टाफ, सिविल सर्जन एवं रेस्टोरा के स्टाफ ने यह निर्णय किया कि ताँगे वाले ने महेश कोल की जी-जान से सेवा की है, इसलिए इसके शव के अग्नि-संस्कार का अधिकारी यह ताँगे वाला ही है । ताँगे वाले ने काँपते हाथों 'कौल' के शव का अग्निसंस्कार किया और अश्रु पूर्ण नेत्रों से भावभीनी विदाई दी। शव यात्रा के सभी यात्री तांगे वाले की ईमानदारी, सेवाभावना एवं त्यागवृत्ति की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा कर रहे थे। उसकी दृढ़धर्मिता के प्रति सभी नतमस्तक थे।
तीसरे दिन महेश कौल के छोटे भाई गिरिजाशंकर आए । उन्हें अपने बड़े भाई की मृत्यु का असह्य दुःख हुआ, साथ ही ताँगे वाले की ईमानदारी, उदारता एवं निःस्वार्थ सेवावृत्ति से अपार आनन्द भी हुआ।
गिरिजाशंकर ने विचार किया कि भाई साहब पचास हजार रुपयों का माल खरीदने आए थे, पर वे असमय में ही चले गये । तब मैं ये रुपये वापस क्यों ले जाऊँ? बड़े भाई की स्मृति रूप तांगे वाले की नि:स्वार्थ सेवा के उपलक्ष्य में उसे दान क्यों न कर दूं ? फलतः गिरिजाशंकर ने वह पचास हजार की बृहद् धनराशि तांगे वाले को देते हुए कहा- "लो ये रुपये तुम्हारे तथा तुम्हारे बच्चों के काम आएंगे।" परन्तु ताँगे वाले ने दोनों हाथ जोड़कर कहा--"भाई ! आप इसके लिए मुझे क्षमा करें । मैं आपकी इस आज्ञा का पालन करने में असमर्थ हूँ। आप जो धनराशि दे रहे हैं, उसका मूल्य है, पर धर्म और ईमान तो अमूल्य हैं । आप तो मुझे यह आशीर्वाद दें कि मैं सतत अपनी अमूल्य निधि ईमानदारी और धार्मिकता पर डटा रहूँ। वे ही मुझे प्राप्त होती रहें । मैं मानता हूँ, ऐसा होने पर मैं सबसे बड़ा धनिक हूँ। रही बात बच्चों की, सो वे अपने भाग्य के निर्माता स्वयं ही हैं । गरीबी में धर्म और ईमान बना रहे. मेरे तथा मेरे परिवार के लिए यही सर्वस्व है।" गिरिजाशंकर के मुंह से अनायास ये उद्गार निकले-"तुम मनुष्य नहीं, मनुष्य के रूप में देव हो । मैं अपने भाई को खोकर तथा तुम-से दृढ़धर्मी, त्यागवृत्ति वाले ईमानदार भाई से ईमानदारी आदि का बोधपाठ लेकर देश लौट रहा हूँ। सर्वत्र मैं तुम्हारी ईमानदारी और दृढ़धर्मिता की चर्चा करूंगा।"
___ बन्धुओ ! यह है वर्तमान युग में दृढ़धर्मिता का ज्वलन्त उदाहरण ! ऐसे दृढ़धर्मी पुरुषों का सतत सत्संग जीवन को धन्य और पावन बना देता है, इसमें कोई सन्देह नहीं।
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