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________________ जो धार्मिक, वे ही सेवापात्र २३५ कृष्णराज सागर बाँध एवं अद्भुत विद्युत् प्रकाश देखा। देखकर वह ज्यों ही पुल की सीढियों पर चढ़ रहा था कि अचानक चक्कर आया और पुल की सीढ़ियों पर लुढ़कता-लुढ़कता नीचे आ गया। कुछ शक्ति आने पर हाथ, पैरों एवं मस्तक का रक्त पोंछकर फिर पुल की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा । अन्तिम सीढ़ी पर ज्यों ही पैर रखा कि फिर उसे जबर्दस्त. चक्कर आया, जिससे वह व्यापारी लुढ़कता हुआ सबसे नीचे की सीढ़ी पर आकर लहूलुहान हालत में गिर गया । बेहोशी भी आ गई थी। एक ताँगे वाले ने इस व्यापारी को इस दुर्दशा में देखा तो चाबुक को तांगे में रखकर पुल पर आया। रक्तलिप्त व्यापारी को, जिसके वस्त्र रक्त में सने थे, गोदी में उठाया, और जैसे-तैसे सीढ़ियाँ चढ़कर ताँगे में सुला दिया। एक हाथ से व्यापारी को, जो कि मृतक-सी हालत में था, पकड़े, और एक हाथ से घोड़े की लगाम धाम घोड को हांक रहा था । ४-५ मील चलने के बाद व्यापारी को कुछ होश-सा आया और उसने लड़खड़ाती जबान से पूछा---'कौन ?' "मैं हूँ तांगे वाला । मैंने आपको कृष्णराज सागर के पुल के जीने से गिरते हुए देखा था । आपके साथ कोई था नहीं, आप बेहोशी की हालत में थे। मेरे मन में आया कि मैं एक घायल व्यक्ति की सेवा करूँ और आपको आपके घर पहूँचा दूं। मैं हूँ तो तांगे वाला, पर ईमानदारीपूर्वक आजीविका कमाता हूँ।” व्यापारी कोट की जेब से १०० रु० का नोट निकाल कर तांगे वाले को देते हुए कहा-“लो तुम्हारे लिये इनाम !' ताँगे वाले ने व्यापार से कहा—'सेवा का मूल्य सोने-चांदी के टुकड़ों या कागज के रंगीन टुकड़ों से नहीं आंका जा सकता । मैं आपको किसी लोभ से प्रौरत होकर नहीं लाया । मैं तो परमात्मा को सर्वत्र व्यापक देखकर जीता हूं। मैं भगवान् से प्रतिदिन यह प्रार्थना करता हूं कि प्रभो ! मुझे ऐसा बल दे, ताकि अपने धर्म और ईमानहारी पर डटा रहूँ। मैं बेईमानी और पाप से सदैव दूर रहूं। प्रभु कृपा से मैं अपने लक्ष्य में सफल हुआ हूं।" तांगे वाले की धार्मिकता और ईमानदारी से प्रभावित होकर व्यापारी ने ५०० के नोट निकाले और उसके हाथ में थमा दिय । इस बार तांगे वाला अपने धर्म और ईमान की परीक्षा होती देखकर सावधान होकर बोला- 'मुझे माफ कीजिए. बाबूजी ! आपसे मुझे एक भी पाई लेना हराम है ।" और उसन व ५०० के नोट व्यापारी को सौंप दिये । परन्तु नोट व्यापारी के हाथ में न जाकर तांगे में ही गिर गए । व्यापारी पुनः बेहोश हो गया, उसके मुंह से सफेद झाग निकल रहे थे । तांगे वाले ने प्रार्थना की-'प्रभो ! क्या यह व्यक्ति अपने घर पहुँचने से पहले ही विदा ले लेगा और मेरी सेवा अधूरी ही रहेगी।' उसने ५०० के नोट उठाकर व्यापारी की जेब में रखे । ठीक १० बजे रात को तांगा मैसूर पहुँचा। तांगे वाले ने पुलिस स्टेशन पर तांगा रोका और रिपोर्ट की। संयोगवश डी० एस० पी० वहाँ थे, वे ४-५ पुसिल जवानों के साथ तांगे के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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