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२३४ आनन्द प्रवचन : भाग ११
धर्म को सेठ सुदर्शन जाना, अभया रानी ने छल कर आना।
चढ़ गया शूली दीवाना, बने तो चढ़ जाना, है बड़ी बात यही ॥धर्म पर०॥४॥
धर्म को जाना चन्दनबाला, कि बेची अपनी देह विशाला ।
सव से पिया कष्ट का प्याला, वने तो पी जाना, है बड़ी बात यही ॥धर्म पर०॥५॥
धर्म पर डट गए मोरध्वज राजा, पुत्र को अर्पण किया धर्म के काजा।
शीश पर चला दिया है आरा, बने तो कट जाना, है बड़ी बात यही ॥धर्म पर०॥६।। ये हैं धार्मिकों की मुंह बोलती कहानियाँ !
धार्मिक वह नहीं है, जो केवल भक्ति गीतों द्वारा पूजा जाता हो, किन्तु वह है जिसके त्याग-बलिदान के गीत गाये जाते हों। एक फ्रेंच विचारक मेड डी स्टेइल (Mad De stael) ने इसी विचार का समर्थन किया है
A religious life is a struggle and not a hymn. -धार्मिक जीवन संघर्षात्मक होता है, स्तुतिगीतात्मक नहीं।
वास्तव में, धार्मिक जीवन में प्रतिक्षण, पाप और धर्म का संघर्ष चलता रहता है । गीता के शब्दों में कहूँ तो धर्मक्षेत्र रूपी कुरु (कर्त्तव्य क्षेत्र) में कौरव और पाण्डव-अर्थात् आसुरी और देवी दोनों प्रकार की वृत्तियों का संघर्ष चल रहा है। पाप और धर्म दोनों के युद्ध में धार्मिक व्यक्ति प्रतिक्षण धर्म को विजय दिलाता है; पाप को दूर भगाता है।
__ लगभग १४-१५ साल पहले की एक सच्ची घटना है, जिसे 'कल्याण' में मैंने पढ़ी थी। मध्यप्रदेश का एक प्रतिष्ठित व्यापारी ५० हजार रुपये लेकर दक्षिण भारत (मैसूर, मदुरा और मद्रास) में माल खरीदने के लिये जा रहे थे । इस प्रान्त में शतरंजो, साड़ियाँ एवं मैसूर में चन्दन की लकड़ी की कलामय वस्तुएँ अच्छी और सुन्दर बनती हैं । व्यापारी ने एक-एक हजार के ५० नोट बनयान के दोनों जेबों में रखकर जेबें भलीभाँति सी लीं। सबसे पहले यह व्यापारी मैसूर पहूँचा और 'कर्नाटक रेस्टोरा' में ठहरा । वहाँ से १४ मील दूर कृष्णराज सागर का बांध और इलेक्ट्रिक प्रदर्शन देखने गय । यह प्रदर्शनीय स्थल शाम को ४ बजे से रात के १० बजे तक मैसूर सरकार की ओर से आम जनता के लिए खुला रहता था। व्यापारी ने
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