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जो धार्मिक, वे ही सेवापात्र २३३ किसान के द्वारा की गई निःस्वार्थ सेवा एवं दया का वर्णन करके सबका समाधान किया।
बन्धुओ ! यह है सच्चे धार्मिक की पहचान ! ऐसे सच्चे धार्मिक दुनिया में यदि कोई हैं तो विरले ही हैं ।
दृढ़धर्मी : सच्चा धार्मिक कई लोग सादे-सीधे, सरल एवं ईमानदार व्यक्ति को अधार्मिक घोषित कर देते हैं और वाचाल एवं आडम्बरप्रिय व्यक्ति को धार्मिक; पर यह पैमाना गलत है। सच्चा धार्मिक वही है, जो एकान्त में भी पाप नहीं करता, मार सकने पर भी नहीं मारता, जो सिर कटते रहने पर भी झूठ नहीं बोलता, जो रास्ते में पड़े रत्नों को भी नहीं उठाता, जो निन्दा-स्तुति में रुष्ट-तुष्ट नहीं होता, जो परदेश में जाकर भी अपने धर्म को नहीं भूलता, जो नवयौवना स्त्री को देखकर भी मन को विकृत नहीं करता। सच्चा धार्मिक चाहे अकेला हो, चाहे कई आदमियों के बीच में, वह पापकर्म कर ही नहीं सकता, न तो भय उसे धर्म से विचलित कर सकता है, और न ही लोभ उसे धर्म से डिगा सकता है; उसमें धर्म के संस्कार इतने कूट-कूटकर भरे रहते हैं कि चाहे उसके प्राण चले जाएँ, चाहे धन, साधन, परिवार छूट जाएँ, वह धर्मविरुद्ध कार्य नहीं कर सकता, श्वासोच्छ्वास की तरह धर्म उसके रोम-रोम में रमा रहता है। वह अपने प्रत्येक कार्य के साथ धर्म का पुट देता है । धर्म उसके जीवन के हर मोड़ पर रहता है, एक पहरेदार की तरह। जरा-सा अधर्म या पाप वह सह नहीं सकता।
एक कवि ने प्राचीन दृढ़धर्मी धार्मिकों का परिचय एक भजन में दिया हैधर्म पर डट जाना, है बड़ी बात यही० २।।धृव।।
धर्म को मेघरथराय निभाया, जिनकी शरण कबूतर आया।
बाज को काट दिया तन सारा, बने तो कट जाना, है बड़ी बात यही ॥धर्म पर०॥१॥
धर्म को जाना हरिश्चन्द्र दानी, जिन्होंने बेचे पुत्र और रानी।
भरा है जाय नीच घर पानी, बने तो बिक जाना, है बड़ी बात यही ॥धर्म पर०॥२॥
धर्म को गजसुकुमाल ने धारा, सोमल शीश धरा अंगारा ।
मस्तक सीज गया है सारा, बने तो सिक जाना, है बड़ी बात यही ॥धर्म पर०॥३॥
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