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________________ २३२ आनन्द प्रवचन : भाग ११ किसान ने कहा- "मेरे भाई ! मैंने कोई भी कार्य बदले की भावना से नहीं किया है । एक भाई को दुःखी देखकर दूसरा भाई चुपचाप खड़ा रहे, यह शोभा नहीं देता । जो इन्सान, इन्सान के काम नहीं आता, वह मनुष्य नहीं, पशु है या दानव है । आपकी सेवा से मुझे जो सन्तोष और सुख हुआ है, वही मेरे कर्तव्यपालन का उपयुक्त पुरस्कार है । और किसी प्रलोभन में मुझे न डालें । सेवा को आजीविका बनाना मुझे नहीं रुचता । आप कहते हैं, तुम्हारा-हमारा कोई नाता नहीं, सो वास्तव में ऐसी बात नहीं है । इन्सान, इन्सान का जातिभाई है । इस नाते आप मेरे भाई हैं।" आगन्तुक के स्वस्थ होते ही किसान खेत पर जाने को तैयार हुआ । परन्तु वह भी किसान के पीछे-पीछे हो लिया। आगन्तुक मेले में आ-जा रहे लोगों के समक्ष जोर-जोर चिल्लाकर चलता रहा कि, 'यह किसान बड़ा धर्मात्मा है, इस किसान-सा धर्मात्मा मैंने नहीं देखा।' इस पर किसान ने कहा- भाई ! इस प्रकार मेरी क्यों प्रशंसा कर रहे हो ? मैंने कोई बड़ा काम नहीं किया है। मैं एक मामूली अनपढ़ किसान हूँ।' इतने पर भी आगन्तुक नहीं माना और कृषक की प्रशंसा करता चला गया । लोगों ने किसान की प्रशंसा सुनी तो उत्सुकतापूर्वक पूछ ही लिया- "इसने धर्म का कौन-सा काम किया है ?" उसने उत्तर दिया-'इसने निःस्वार्थ भाव से धर्मकार्य किया है। मनुष्य के प्राण बचाये हैं। मुझे तो इसके जैसा धार्मिक कोई नहीं मिला।" विश्वनाथ मन्दिर के पास से होकर दोनों निकले, जहाँ पुजारी थाल देने के लिए खड़ा था । उस मनुष्य ने कहा-''पुजारीजी ! थाल इन्हें दो, ये बड़े धर्मात्मा पुरुष हैं । थाल के सच्चे अधिकारी तो यही हैं।" पुजारी ऐंठकर बोला-‘ऐसे ऐरे-गैरे के लिए यह थाल नहीं है। यह एक मामूली किसान है । खेती करके उदर निर्वाह करता है। यह सबसे बड़ा धर्मात्मा कैसे हो सकता है ?" वह बोला-"तो जाँच कर लेने में हानि ही क्या है ? आपके पास धर्मात्मापन की जाँच करने का साधन है ही। भले ही यह किसान तिलक-छापे नहीं लगाता, मन्दिर में प्रतिदिन नहीं जाता, न अपने को भक्त कहता है, फिर भी यह बड़ा धर्मात्मा है। एक बार थाल हाथ में देकर देख तो लो।" पुजारी ने उस किसान को थाल लेने के लिए बुलाया। किसान संकोच में पड़ गया। वह थाल लेने से इन्कार करने लगा। जो त्याग करता है. उसे सभी देना चाहते हैं । सभी लोग आग्रह करने लगे। पुजारी ने उसके हाथ पर थाल रख दिया । किसान के हाथ में थाल लेते ही वह थाल एकदम चमक उठा, मानो धर्म का तेज थाल में से फूट पड़ा हो। ___ लोग दंग रह गये । सभी एक स्वर से उस किसान की सराहना करने लगे। लोगों ने पूछा-'इस किसान ने ऐसा क्या धर्माचरण किया है ?' किसान के साथी ने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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