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जो धार्मिक, वे ही सेवापात्र २३१
फिर आए एक गीता और रामायण के धुरन्धर विद्वान् । वे विद्वान् तो थे, पर गीता, रामायण के अनुसार उनका जीवन नहीं था । फिर भी अपने आपको धर्मात्मा मानते थे । उनके हाथ में थाल देते ही थाल ने उनकी भी पोल खोल दी ।
इसके बाद आए यज्ञ कराने वाले एक धनिक, जो प्रतिवर्ष लाखों रुपये खर्च करके महायज्ञ कराते थे । पुण्य लूटते थे । किन्तु उधर व्यापार बेईमानी, ठगी आदि करके गरीबों पर अन्याय करके, वे लाखों रुपये कमाते थे । वे समझते थे इस प्रकार के यज्ञ कराने से वे पाप धुल जाएँगे, पर पापकर्मों का क्षय यों होता नहीं था । आखिर उनके हाथ में भी थाल दिया गया तो वह स्याह पड़ गया । इसके बाद कई तपस्वी आए, जिन्हें अपने तप का घमण्ड था । कई क्रियाकाण्डी लोग अ. ए, जिन्हें क्रियाकाण्ड पर से धार्मिक होने का नाज था । यों एक के बाद एक अनेक लोग आए, पण्डे ने क्रमशः उन सबके हाथ में थाल दिया तो थाल ने उन सबकी कलई खोल दी । जब पण्डे ने थाल को यथास्थान रखा तो वह पहले की तरह चमकने लगा ।
इधर मेले में आते समय एक मनुष्य अत्यन्त मूच्छित होकर धरती पर गिर पड़ा, उसे कैं होने लगी, जी घबराने लगा। मेले में हजारों स्त्री-पुरुष जा रहे थे, पर किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया । सब कह रहे थे - चलो, सोने का थाल किस को भेंट दिया जाता है, देखें । जल्दी चलो | हमें कहाँ फुरसत है, ऐसे ऐरे गैरे आदमियों को उठाने और होश में लाने की ? मालूम होता है, इसने अधिक खा लिया है, इसी का दण्ड इसे मिल रहा है । अपने किये का फल भोगे ! हम क्या करें !
उसी अवसर पर एक किसान कंधे पर हल लादे अपने खेत पर जा रहा था । रास्ते में उसने इस मूच्छित मनुष्य को देखा । किसान स्वभाव से दयालु था, इन्सान को दुःख में पड़ े देखकर उसका दुःख दूर करने का प्रयास किये बिना यों ही मुख मोड़कर चले जाना, वह मानवता और धर्म के विरुद्ध समझता था। किसान दयार्द्र होकर उसके पास गया । उसे अपने कंधे पर उठाया और बड़ े यत्न से अपने झोंपड़ पर लाया । शीतल उपचार से उसे होश में लाया । पीड़ा के मारे वह कराह रहा था, उसे सान्त्वना दी । अपनी गाय दुहकर उसे ताजा दूध पिलाया, इससे वह स्वस्थ हुआ ।
स्वस्थ होते उसने कृषक से पूछा - "भाई ! तुमने मेरे पर बहुत बड़ा उपकार किया । तुम्हारा परिचय तो दो कि तुम कौन हो ?"
कृषक ने कहा- "मैंने तो अपना कर्तव्य पालन किया है । मैं एक गरीब किसान हूँ । इसी झोंपड़ में रहता हूँ । इसके सिवाय मेरा और कोई परिचय नहीं है ।
किसान की सरलता, दयालुता और धार्मिकता से आगन्तुक मुग्ध हो गया । वह बोला - " मेले में मेरे कई परिचित भी हैं, कई सम्बन्धी भी । उनमें से किसी ने मुझे संभाला नहीं, तुमने बिना किसी जान-पहचान के बिना किसी स्वार्थ के मुझ उठाया, घर पर लाए, मेरी सेवा की, मुझे जीवनदान दिया । मैं इस उपकार से कसे उऋण हो सकूँगा ।"
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