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२२६ आनन्द प्रवचन : भाग ११
कठिन हो जाता है । नकली धर्मात्मा बने हुए लोगों के चारों ओर भीड़ लगी रहती है । वे महन्त, गुसाईं, मन्दिर के पुजारी या अमुक उच्च पद पर होते हैं । भोली जनता उनके वर्चस्व को देखकर उन्हें बड़े आदमी, धार्मिक या धर्म-रक्षक मानती है, परन्तु वे दूसरे की बहू-बेटियों पर बुरी नजर डालते हैं, उन्हें भय या प्रलोभन देकर किसी भी प्रकार से अपने जाल में फंसाकर भ्रष्ट कर देते हैं । बड़ी-बड़ी जागीरी और जमींदारी उनके पास है, या मन्दिर की लाखों की आमदनी उनके भोग-विलास पर खर्च होती है । वे पुत्र कामनावश आई हुई भोली-भाली युवतियों, को पुत्र की; धन या अन्य साधन की आशा से आए हुए अपने भक्तों की इच्छा पूर्ण करते हैं । यंत्र, मंत्र तंत्र, गंडा, ताबीज आदि देकर वे सांसारिक लोगों की कामनाओं को पूर्ण करने का प्रयत्न करते हैं । उनका महारम्भी - महापरिग्रही जीवन क्या केवल किसी धार्मिक पद से सम्प्रदाय - भक्तों की भीड़ से सच्चे माने में धार्मिक जीवन कहा जा सकता है ? मेरा अनुमान है, आप ऐसे व्यक्तियों को धार्मिक कहना पसंद नहीं करेंगे । परन्तु आम जनता की स्थूल आँखों में वे धर्मात्मा बने हुए हैं, वे ही आम जनता पर धार्मिक नाम से छाये रहते हैं ।
किन्तु कोई सादा सीधा गरीब, ग्रामीण धर्मपरायण स्त्री या पुरुष उनके मन्दिर या मकान की किसी कोठरी में आश्रय लेना चाहे तो वे उसे प्रायः ठुकरा देते हैं । वह चाहे जितनी आरजू-मिन्नत करे, उन तथाकथित धार्मिकों का हृदय नहीं पसीजता, वे उसे विधर्मी, या अन्य धर्मी अथवा अधर्मी कहने का साहस करके उसे भगा देते हैं, वहाँ से ।
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एक छोटा-सा सुन्दर गाँव था । गाँव के निकट ही संगमरमर का बना एक भव्य मन्दिर था । प्रभात काल की सुनहरी किरणें उस पर पड़तीं तो उसकी शोभा में चार चाँद लग जाते । मन्दिर का पुजारी इस मन्दिर की शोभा बढ़ाने के लिए अहर्निश जागरूक रहता था । इस कारण पुजारी की सत्ता भी दिनोंदिन बढ़ने लगी। आगे चलकर पुजारी ही मन्दिर का सर्वेसर्वा बना दिया गया । पुजारी ने मन्दिर के नियमो - पनियम एवं विधान बना लिये, उन नियमों आदि को कैसे क्रियान्वित करना, यह भी उसने निश्चित कर लिया । गाँव के लोग उस पुजारी को ही धर्मात्मा समझकर उसके पास जाते और मन्दिर में पूजा-पाठ करके चढ़ावा चढ़ाकर चले आते । पुजारी ही मन्दिर का कर्ताधर्ता होने से किसी का साहस उसके विरुद्ध कुछ भी बोलने या विरोध करने अथवा उसके फरमान का उल्लंघन करने का नहीं होता था ।
एक दिन आकाश में घटाटोप घने बादल छाए हुए थे । अचानक मेघ गर्जन होने लगा, बिजलियाँ चमकने लगीं। चारों ओर घोर अँधेरा छा गया । पुजारी मन्दिर के प्रवेश द्वार पर खड़ा था । आकाश की ओर सिर उठाकर उसने देखा कि सहसा किसी स्त्री की आवाज उसके कानों में टकराई । वह चौंका । स्त्री की आवाज
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