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२२४ आनन्द प्रवचन : भाग ११ व्यक्ति हैं ?" उन्होंने कहा- "वैसे तो भले आदमी हैं, चरित्रवान हैं, परन्तु इस्लाम धम की दृष्टि से वे निकृष्ट (खराब) से निकृष्ट व्यक्ति हैं।" उनका आशय थामुस्लिम मजहब की दृष्टि से वे धार्मिक नहीं हैं क्योंकि वे मजहबी दीवाने नहीं थे; धार्मिक पागलपन, कट्टरता या धर्मान्धता उनमें नहीं थी।
औरंगजेब बादशाह कट्टर मुसलमान था। कहते हैं, वह नमाज पढ़ता था, रोजे रखता था, अन्य मजहबी क्रियाकाण्ड करता था। परन्तु शुद्ध धर्म के तत्त्वों का उसमें नामोनिशान न था । वह कट्टर धर्म-जनूनी था, धर्मान्धता के आवेश में आकर उसने लाखों हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया था। जो हिन्दू या सिक्ख मुसलमान नहीं बने, उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया। उसमें राज्यलिप्सा बहत जबर्दस्त थी, साथ ही हिन्दुओं के साथ छल-कपट करके उन्हें मरवा देने, राज्य छीन लेने की बुरी नीयत भी थी। इस दृष्टि से न तो उसमें अहिंसा थी, न सत्य था और जहाँ कपट, झूठ-फरेब आदि थे, जहाँ चोरी का पाप आ ही जाता है। ब्रह्मचर्य के सम्बध में भी औरंगजेब की दृष्टि स्पष्ट नहीं थी, राज्यलिप्सा, राज्य वृद्धि की अहर्निश लालसा ने ही उसके द्वारा अपने पिता की दुर्गति करवाई अपने सगे भाइयों को मौत के मुंह में ठेलवा दिया गया। फिर भी मुस्लिम जगत् में औरंगजेब को धार्मिक एवं धर्मसेवा करने वाला माना जाता है । क्या इस प्रकार के व्यक्ति को जिसमें केवल अमुक धर्म सम्प्रदाय के ही क्रियाकाण्ड हों धर्म के तत्त्वों-या अहिंसा-सत्यादि अंगों का लेश भी न हो, धार्मिक कहा जा सकता है ? कदापि नहीं।
और ऐसा व्यक्ति, जो शराब भी पीता हो, मांसाहार भी करता हो. जुआ चोरी, शिकार, वेश्यागमन एवं परस्त्रीगमन आदि दुर्व्यसनों में रचा-पचा हो, परन्तु मन्दिर में जाता हो, आरती करता हो, शंखनाद या घंटावादन करता हो, पूजा-पाठ या सन्ध्योपासना करता हो, अपने चौके में किसी असवर्ण को घुसने न देता हो, चौका पूरा शुद्ध रखता हो, जनेऊ रखता हो, साढ़े ग्यारह नंबर का तिलक लगाता हो. चोटी रखता हो, क्या इतने से हम उसे धार्मिक कह सकते हैं ? जबकि धर्म के प्रथम अंगभूत कुव्यसन त्याग उसमें नहीं है, नैतिक जीवन का क, ख, ग, उसने नहीं पढ़ा है, तब नीति-धर्म-तत्त्वविहीन व्यक्ति के जीवन केवल धार्मिक चिन्हों और रीतिरस्मों के होने मात्र से धार्मिक जीवन का प्रमाणपत्र कैसे दिया जा सकता है ?
अफ्रीका में वर्षों से रहने वाले एक ब्राह्यण की सच्ची घटना है । वह सभी कुव्यसनों में ग्रस्त था। परन्तु जनेऊ और चोटी रखता था, चौके की पूरी शुद्धि रखता था। एक बार कोई सम्भ्रात ब्राह्मण परिवार का व्यक्ति उसके पुत्र के साथ अपनी पुत्री की सगाई पक्की करने के लिए आया । बातचीत के सिलसिले में उसने उक्त ब्राह्मण के पुत्र से पूछा- 'कहो जी ! तुम मांसाहार तो नहीं करते ?" उसने कहा-'मांस, अंडे खाने में कौन-सा पाप या बुराई है ? हम चाहें मांस खाते हों, पर
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