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चुगलखोर का संग बुरा है २१६ छिद्र पर देख निन्दा करे केम, छोड़के छिद्र सगुण लहीजे । बंबूल देख के कांटा ग्रहे मत, छाया ने शीतल होत सहीजे ॥ तुच्छ असार आहार है धनु का, छीर विगै तामें सा कहीजे । कहत त्रिलोक स्वछिद्र को टालत, काहे को अन्य का छिद्र गहीजे ॥ .
कई लोग बुराइयों का प्रतिरोध करने के आवेश में लगातार किसी की निन्दा या बुराई करते जाते हैं, परन्तु यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि किसी की बुराई, निन्दा या चुगली करने से उसका सुधार नहीं किया जा सकता, उसके लिए उसको परिस्थितियों, समस्याओं और मनोवृत्तियों को सुधारने का प्रयत्न करना चाहिए, जिनके कारण वह बुराई उत्पन्न होती है। अतः चुगलखोरी या निन्दा करना गंदगी या गंदी गटरों की ओर झाँकना है, उससे आन्तरिक सफाई नहीं हो सकती, सुगन्धित फूलों या बगीचों पर दृष्टि रखने से ही मनुष्य की आत्मिक स्वच्छता हो सकती है । पैशुन्य से अभ्याख्यान तक
जो मनुष्य पैशुन्य व्यसनी होता है, वह पैशुन्य तक ही सीमित नहीं रहता, पैशुन्य से परपरिवाद, रति-अरति, मायामृषा और मिथ्यादर्शन की पापपूर्ण सीढ़ियों से नीचा उतरता हुआ अभ्याख्यान तक पहुँच जाता है। जिसे चुगली खाने की आदत होती है, वह निश्चित ही दूसरे की पीठ पीछे निन्दा किये बिना नहीं रहता। जब निन्दा करता है तो अपने गुट में मिल जाने वाले या अपने स्वर में स्वर मिलाने वाले लोगों के प्रति प्रीति (मोह), अथवा अपने मालिक का प्रिय बनने के लिए उसके प्रति प्रीति और जिसकी निन्दा कर रहा है, उसके प्रति अप्रीति (घृणा) पैदा होती है। फिर अगर कोई उस व्यक्ति को अपनी कही गई (निन्दा की) बात सिद्ध करने के लिये कहा जाता है तो वह नाना प्रकार के झूठ, फरेब, दम्भ, तिकड़मबाजी आदि करता है, जिसे मायामृषा कहते हैं, वहाँ तक पहुँच जाता है । कपटपूर्वक षड्यन्त्र रचता है । देव, गुरु और धर्म की झूठी सौगन्ध खाकर इन्हें भी धता बताकर अपना उल्लू सिद्ध करने का प्रयास करता है; और फिर पहुँच जाता है अभ्याख्यान के मंच परयानी जिसकी चुगली करता है, उस पर मिथ्या दोषारोपण कर देता है। इस प्रकार पैशुन्य का रसिक अनेक पापों का पुज लेकर नरक यात्रा करता है।
इसलिए ऐसे पैशुन्य के शिकार व्यक्ति की संगति चाण्डाल के समान त्याज्य है, न ही उसकी सेवा में रहना चाहिये, न ही उसके आश्रय में । इसी बात को त्रिलोक काव्य संग्रह में सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया गया हैनरक निगोद भ्रमे निन्दा को करणहार,
चंडालसमान वाकी संगति न काम की। आपकी बड़ाई पर तात में मगन मूढ़,
ताकत है छिद्र पर नियत हराम की। जाको निन्दा बात सुण खुशी नहीं होय,
भूल, पीछे से कहेगो दुष्ट तेरी बदनाम की।
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