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अनवस्थित आत्मा ही दुरात्मा ३ पर-घर में अपने घर जैसा, हा हा ! तरा सत्कार कहाँ ? सहकार कहाँ, व्यवहार कहाँ, और उचित उपचार कहाँ ? अपनी भूमि पर विजयध्वजा फहराऊँ कौन मना करता ? ॥२॥ कितना उन्नत चिन्तन दिया है, कविवर मुनिश्री ने !
वास्तव में मनुष्य अपने आत्मारूपी बाग का माली स्वयमेव है, वह चाहे तो अपने बाग को अच्छा बना सकता है, और चाहे तो इसे बिगाड़ या उजाड़ सकता है।
एक वास्तविक सौन्दर्य का उपासक मस्त यात्री वनराजि के अद्भुत सौन्दर्य को निहारता हुआ एक गिरिशृंग पर चढ़ गया। वहाँ से उसने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई तो सहसा उसे एक छोटा-सा सुन्दर बंगला नजर आया। बंगले के चारों ओर एक नयनाभिराम उद्यान लगा हुआ था। उस मस्त यात्री ने उधर ही अपने चरण बढ़ाये । धीमे कदमों से उद्यान में प्रवेश किया। चारों ओर वातावरण सुन्दर सुगन्धित था। नवपल्लवित वृक्ष आनन्द से झूम रहे थे। पक्षियों का सुन्दर कलरव हो रहा था। लताएं रंग-बिरंगे फूलों से सुशोभित थीं । उद्यान में वह यात्री घूम रहा था कि सहसा एक वृद्ध ने उसके रंग में भंग डाला। उसने पूछा-“कहिए महाशयजी ! किससे काम था ?" यात्री बोला-"काम किसी से नहीं था, इस मनोहर उद्यान को देखकर इसका सौन्दर्य-पान करने आया हूँ। आप इस उद्यान के माली मालूम होते हैं।"
माली स्वीकृतिसूचक 'हाँ' कहकर खुरपी से फूलों की क्यारी को खोदने में लग गया। यात्री भी फूलों की क्यारी के पास रखी हुई एक बेंच पर बैठ गया। स्वच्छ और सुव्यवस्थित उद्यान को देखते ही यात्री का मन प्रफुल्लित हो उठा । उसने बंगले की ओर दृष्टि फेंककर पूछा-“माली ! यह बंगला किसका है ?"
माली बोला-'मेरे मालिक का है !" यात्री ने कहा-"तब तो वह इस समय यहीं होंगे।" "नहीं, वे तो काफी अर्से से परदेश में रहते हैं।“ माली ने कहा। यात्री-"तब तो आजकल में वे आने ही वाले होंगे।"
माली ने आनन्दविभोर होकर कहा- "भाई ! आप यह समझ रहे होंगे कि मेरे मालिक आजकल में आने वाले हैं, इसोलिए मैं इस बाग को व्यवस्थित कर रहा है। पर ऐसी बात नहीं है। मेरे मालिक कई वर्षों से परदेश ही हैं । वे यहां थे, तब भी इस बाग की शोभा ऐसी ही थी, वे आज यहाँ नहीं हैं तो भी वैसी ही है और अविष्य में भी वैसी ही रहेगी।" के यात्री साश्चर्य बोला-"आपके मालिक यहाँ नहीं हैं, कब आएंगे, इसका भी कोई निश्चित नहीं फिर किसे दिखाने के लिए आप इतना परिश्रम कर रहे हैं ?" * माली ने कहा-"बाग को सुव्यवस्थित और शोभायमान रखना, प्रत्येक माली का कर्तव्य है। मेरे मालिक ने पूरे विश्वास के साय मुझे यह बाग सौंपा है,
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