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चुगलखोर का संग बुरा है
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मनुष्य यह चाहता है कि दूसरे लोग मेरी निन्दा न करें, मुझे भला-बुरा न कहें, इसके लिये आवश्यक है कि वह भी किसी की निन्दा न करे ।
परनिन्दा करने से व्यक्ति जिसकी निन्दा करता है, उसका शत्रु बन जाता है। शत्रुओं को बढ़ाने का सबसे आसान नुस्खा है-उनकी निन्दा। परन्तु जो मनुष्य सारे जगत् को अपना बनाना चाहता है, उसे क्या करना चाहिए ? इसके लिए चाणक्यनीति में कहा गया है
यदीच्छसि वशीकत्तु जगदेकेन कर्मणा ।
परापवादशस्येभ्यो, गां चरन्ती निवारय ॥ ---अगर तुम सारे जगत् को केवल एक कर्म से वश करना चाहते हो तो परनिन्दारूप धान्य को चरने वाली जीभरूप गाय को रोककर रखो।
एक बार फिनलैण्ड के विश्वविख्यात संगीतकार सिविलियस से एक नौसिखिया संगीतज्ञ मिलने आया । उसने बातचीत के दौरान कहा-"कुछ निन्दक मेरे पीछे हाथ धोकर पड़े हैं, वे मेरी इतनी तीखी आलोचना (निन्दा) करते हैं, जिसे सुनकर मैं तिलमिला उठता हूँ; निराश हो जाता हूँ। बताइये, मुझे क्या करना चाहिए ?"
सिविलियस ने कहा-"मित्र ! तुम्हें कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है। तुम उन निन्दकों की बातों पर ध्यान ही मत दो। यदि वास्तव में तुम्हारी कोई भूल है, तो उसे सुधार लो। तुम्हें याद रखना चाहिए कि आज दिन तक किसी भी निन्दक के सम्मान में कोई स्मारक नहीं बनाया गया और न ही उसकी मूर्ति बनाकर किसी ने उसकी पूजा की है। संसार में निन्दक को हमेशा घृणा की दृष्टि से देखा जाता है।"
ईर्ष्यालु, निन्दक और चुगलखोर सबको आँखों में अपना सम्मान खो बैठते हैं । उन्हें अविश्वासी, अप्रामाणिक और ओछी प्रकृति का समझा जाता है। कोई उनसे घुलता-मिलता नहीं । सभी सशंक बने रहते हैं। ऐसे लोग भीतर ही भीतर असन्तुष्ट, उद्विग्न और खिन्न भी रहते हैं । उनका शरीर और मन अधःपतन की दिशा में गिरता चला जाता है, क्योंकि निन्दक या चुगलखोर लोग दूसरों की तरक्की देखकर जलते रहते हैं, वे रातदिन यही सोचते रहते हैं कि किसी तरीके से इसे नीचे गिराया जाए, लोगों की दृष्टि में इसको बदनाम किया जाए। इसी प्रकार के दुश्चिन्तन को जैन परिभाषा में रौद्रध्यान कहते हैं, जो महाभयंकर कुध्यान है। इसी कुध्यान के कारण मनुष्य दूसरों की हिंसा करने, दूसरों को नीचा दिखाने, दूसरों का सर्वस्व हरण करने, दूसरे के साथ धोखेबाजी करने या दूसरों की वस्तु अपने कब्जे में करने की उधेड़बुन में रहता है। वह सदैव यह घात लगाता रहता है कि कैसे दूसरों का सर्वनाश कर दूँ।
चुगलखोर में कुढ़न होती रहती है। कुढ़न ऐसी बीमारी है, जिसका कोई इलाज नहीं । वे स्वयं प्रयत्नपूर्वक उच्च स्थिति में पहुँचने का साहस तो नहीं करते,
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