________________
२१४
आनन्द प्रवचन : भाग ११
यह जानकर बहुत दुःख हुआ कि तुम सरीखे हीरे के गले यह पत्थर बंध गया । गजब हो गया । तुम्हें शायद पता नहीं होगा कि तुम्हारी पत्नी कौन है ?"
चन्द्रकान्त–“वह तो महाजन की लड़की है।" मावली-“यही तो अफसोस है । अरे ! वह डाकन है।" चन्द्रकान्त-"क्या बक रही हो, बुढ़िया ?'
मावली-“मैं बक रही हूँ या सच कह रही हूँ; यह तो तुम्हें परीक्षा करने से मालूम हो जायेगा । मैं अपने मुह से क्या कहूँ ?"
चन्द्रकान्त- "हं, ऐसी बात है ? मुझे तो पता ही नहीं था।"
मावली-अच्छा, आज रात को तुम नींद का बहाना बनाकर देख लेना कि वह तुम्हें चाटती है या नहीं ? फिर तो मानोगे न ?"
यों कहकर मावली वहाँ से झटपट चल दी । सेठ चन्द्रकान्त भी बहम के झूले में झूलता हुआ घर आया। आज नर्मदा ने सेठ का प्रतिदिन की तरह स्वागत नहीं किया। सेठ ने भी उसे आज वक्रदृष्टि से देखा।
चुगलखोर बुढ़िया का तीर निशाने पर लग चुका था। वह भी तमाशा देखने के लिए पड़ोस के मकान में आ पहुँची। आज रात को ही दोनों ने एक दूसरे की परीक्षा करने की ठानी । नर्मदा ने सोचा-'यह सो जाये तो मैं चाटकर देखू ।' चन्द्रकान्त ने सोचा-'जरा कपटनिद्रा ले लूँ तो अभी पता चल जायेगा।' यह सोचकर वह थोड़ी देर बाद खुर्राटे भरने लगा। नर्मदा अपने पति को निद्राधीन जानकर धीरे से उठी और उसके अंग को ज्यों ही चाटने लगी त्यों ही सेठ एकदम हड़बड़ा कर उठा और कहने लगा-"अरे डाकन ! डाकन ! दूर हट यहाँ से।" वह भी चमड़ी का स्वाद खारा लगने के कारण कहने लगी-"ओह ! खारिया, खारिया ! फूट गये मेरे भाग्य ।" इस पर सेठ बोला-"अरी डाकन ! हट जा यहाँ से ! मेरा जन्म बिगाड़ दिया।" इस तरह काफी देर तक आपस में बक-झक होती रही। बुढ़िया मावली इस तमाशे को देखकर प्रसन्न हो रही थी। बहुत देर तक जोर-जोर से लड़ने-झगड़ने और चिल्लाने की आवाज सुनकर आस-पास की बहनें इकट्ठी होकर वहाँ आई। पड़ौसिनों ने झगड़े का कारण जानकर पूछा-“अच्छा, यह बताओ नर्मदा बहन ! तुम्हें यह बात किसने कही ?" नर्मदा ने कहा-"मावली बुढ़िया ने !" "और चन्द्रकान्त भाई ! तुम्हें यह बात किसने कही ?' चन्द्रकान्त बोला- "मुझे भी मावली बुढ़िया ने कही। तब तक मावली बुढ़िया वहाँ से सरक गई । पड़ौसिनों ने कहा-“वह तो चुगलखोर है, झूठी है और आपस में लड़ाने-भिड़ाने का धन्धा करती है। उसकी बात पर बिलकुल विश्वास मत करो। वह झूठी बात लगाकर सिर फुड़ाती है । तुम दोनों समझदार होकर भी उसके चक्कर में आ गये। चुगलखोर की बात कभी सच्ची नहीं होती। तुम दोनों को उसने एक दूसरे के विषय में गलतफहमी फैलाकर लड़ा दिया । चलो
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org