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आनन्द प्रवचन : भाग ११
और श्रीराम के विरुद्ध कैकेयी रानी को भड़का दिया। चुगलखोरों की आदत की तरह मंथरा ने भी जो बात नहीं थी, उसे अपनी ओर से गड़ ली और राजा और श्रीराम के विषय में उलटी-सीधी बात बनाकर कैकेयी को बहका दिया। चुगलखोर को क्या लाभ, क्या हानि ?
चुगलखोरी से चुगलखोर को क्या राजनैतिक लाभ होता है ? इस सम्बन्ध में नीतिवाक्यामृत में कहा है
परपैशुन्यन राज्ञां वल्लभो लोकः । -दूसरों की चुगली करने से लोग राजा के प्रेमपात्र बन जाते हैं ।
प्राचीनकाल में राजदरबार में कुछ चुगलखोर लोग रहा करते थे। वे राजा के सम्बन्धियों की चुगली करके एक-दूसरे के विरुद्ध झड़काते और उनसे अपना उल्लू सीधा करते थे।
कई महिलाओं की ऐसी आदत होती है कि वे घर में निकम्मी बैठी रहती हैं, विशेष काम होता नहीं या वे करती नहीं, तब पाँच-सात बहनें मिलकर इधर-उधर की गप्पें हाँकेंगी या किसी की निन्दा चुगली करेंगी। इससे उनका कोई भी पारिवारिक, सामाजिक या आर्थिक लाभ नहीं होता, बल्कि उनका अविश्वास परिवार आदि में बढ़ता जाता है, समाज में ऐसी महिलाओं की कोई इज्जत नहीं करता और न ही ऐसी झूठी निन्दा करने वाले व्यक्तियों को कोई विशेष जिम्मेवारी का काम सौंपता है । ऐसी निन्दा-चुगली करने की जिसे खुजली आती है, वह व्यक्ति प्रतिदिन कई घंटे व्यर्थ ही बर्बाद कर देता है, जिस अमूल्य समय का वह अच्छा उपयोग करके अपना सामाजिक और आध्यात्मिक विकास कर सकता था। वह अपनी उस अमूल्य वाणी की शक्ति को भी बर्बाद करता है, जिस वाणी के द्वारा वह दूसरों का भला कर सकता था। इसी कारण राजस्थानी दोहे में कहा है
ऊंडो जल सूके अवस, नीला वन जल जाय ।
चुगल तणा परतापसू, वसती उज्जड़ जाय ।। भावार्थ स्पष्ट है चुगलखोर लोग कई बार इस प्रकार से एक दूसरे के विरुद्ध झूठी बातें करके सिर फुड़वा देते हैं । वे चुगलखोरी के नशे में इतने चूर हो जाते हैं कि वे दूसरों की गृहस्थी में आग लगाकर तमाशा देखने लगते हैं, इससे अनेक लोगों की गृहस्थी उजड़ जाती है, इसका चुगलखोर को कोई लाभ नहीं होता । ऐसे ही लोगों से सावधान रहने के लिए हितोपदेश में कहा गया है
___वरं प्राणत्यागो, न च पिशुन वाक्येष्वभिरुचिः।
-प्राणत्याग कर देना अच्छा है, किन्तु चुगलखोरों के वचनों में दिलचस्पी लेना अच्छा नहीं।
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