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७२. चुगलखोर का संग बुरा है
धर्मप्रेमी बन्धुओ !
आज मैं आपके समक्ष ऐसे जीवन की चर्चा करना चाहता हूँ, जिसका संग करना बुरा बताया है । महर्षि गौतम जीवन के श्रेष्ठ पारखी थे । उन्होंने निन्द्य जीवन अपनाने का ही नहीं, निन्द्य जीवन वालों का संग करने या उनकी सेवा करने का भी निषेध किया है । गौतमकुलक का यह ५८वाँ जीवनसूत्र है । वह इस प्रकार हैन सेवियव्वा पिसुणा मणुस्सा
- पिशुन ( चुगलखोर या निन्दक ) लोगों का सेवन - संग नहीं करना चाहिए । अब हमें सोचना चाहिए कि पिशुन का जीवन इतना निन्द्य क्यों है और उसका संग क्यों त्याज्य है ?
पिशुन का स्वभाव : दुर्भावपूर्ण
पिशुन का अर्थ है - चुगलखोर; दूसरे की निन्दा या दूसरों की बुराई करना ही जिसका स्वभाव है, वह है पिशुन । एक आचार्य ने पैशुन्य का लक्षण बताया हैपैशुन्यं परोक्षे सतोऽसतो वा दोषस्योद्घाटनं, परगुणासहनतया दोषोद्
घाटनं वा ।
- पीठ पीछे सहन न कर सकने के
सत् या असत् दोष को प्रकट करना अथवा दूसरे के गुणों को कारण उसका दोष बताना पैशुन्य ( चुगली) कहलाता है । पैशुन्य का जिसका स्वभाव है, दूसरों की विद्यमान या अविद्यमान बुराइयों को प्रकट करना ही जिसकी आदत बन जाती है वह पिशुन या चुगलखोर कहलाता है ।
चुगलखोर यथार्थ बात को विपरीत रूप में नमक मिर्च लगाकर पेश करता है । ऐसे ढंग से बात करता है कि उसकी बात में कहीं असत्य होने की गन्ध भी न आ सके । एक राजस्थानी दोहे में चुगलखोर का लक्षण दिया गया है
उलटी को सुलटी करे, सुलटी को उलटाय ।
करे बुरी सब जगत् की, ते नर चुगल कहाय ॥
निष्कर्ष यह है कि चुगलखोर जान-बूझकर दूसरों की बुराई करने के लिए मुंह खोलता है । दूसरे के गुण को अवगुण और अवगुण को गुण के रूप में दूसरों के सामने प्रकट करता है । इस प्रकार की चुगलखोरी से उसे कोई खास फायदा नहीं होता,
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