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आनन्द प्रवचन : भाग ११
त्याज्य बताया है । क्यों त्याज्य है ? यह मैं दोनों प्रकार के व्यक्तियों का विश्लेषण करके बता चुका हूँ।
आप इस विवेक के प्रकाश में अपने आपको देखें, और स्वयं भी अतिमानी एवं अतिहीन न बनें । दोनों ही प्रकार के जीवन दोषयुक्त हैं । उभय जीवन से अनेक दुर्गुण जीवन में प्रविष्ट हो जाते हैं, इसलिए अपना जीवन भी इस प्रकार का होने से बचाएं, साथ ही ऐसे जीवन वाले लोगों से भी अपने आपको दूर रखें। ऐसे लोगों की छाया में रहने से संसर्गज दोष जीवन में प्रविष्ट होने का खतरा है। यही कारण है कि महर्षि गौतम ने चेतावनी दी है
न सेवियव्वा अइमाणी-होणा
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