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अतिमानी और अतिहीन अव्य
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देती-"यह तो अलग-अलग खासियत पर निर्भर है। ठाकुर साहब अफीम लेते हैं, इसलिए शरीर से दुर्बल लगते हैं, लेकिन बल में वे तेली से बढ़कर है।" परन्तु तेलिन मौके-बेमौके अपने तेली की ताकत की शेखियां बघारने से नहीं चूकती थी। ठकुरानी ने एक दिन ठाकुर साहब से तेली को अपनी ताकत बताने को कहा तो उन्होंने कहा"कभी समय आने पर मैं उसे देख लूंगा।"
एक बार गांव पर किसी शत्रु की सेना का हमला होने वाला था। समाचार मिलते ही ठाकुर साहब अफीम लेकर अश्वारूक हो सेना के साथ युद्ध के लिये चल पड़े। संयोगवश मार्ग में वह तेली लोहे का कुश हाथ में लिये खड़ा था। ठाकुर साहब ने ज्यों ही उसे देखा, अपना घोड़ा उसके निकट ले जाकर तपाक से वह लोहे का कुश तेली के हाथ से लेकर पूरी ताकत से इस प्रकार मोड़ दिया मानो तेली के गले में हंसली (गले का आभूषण) पहना दी गई हो। तेली ने बहुत जोर लगा लिया लेकिन वह हिलती ही नहीं थी। कुशरूपी हंसली के कारण तेली का जोवन दूभर हो गया। तेलिन फिर ठकुरानी के सामने आजिजी करने लगी कि किसी तरह ठाकुर साहब से कहकर मेरे पति के गले से कंश निकलवाओ । ठकुरानी ने हंसते हुए कहा"तू तो कहती थी न, मेरा पति बड़ा बलवान है।"
वेलिन बोली-“मेरी नासमझी पर ध्यान न दें, माफ करें।"
ठकुरानी ने एक दिन ठाकुर से कहा-“बेचारे तेली के गले में लोहे का कुश आपने मोड़कर डाल दिया, बेचारा मुसीबत में पड़ गया, किसी तरह उते निकाल दीजिए।"
अकुर-"तुमने ही तो उसे ताकत का चमत्कार बताने को कहा था । वह तो जोशपूर्ण स्थिति थी । अब वैसी जोशपूर्ण स्थिति माने पर ही कुश निकाली जा सकेगी।"
संयोगवश ५-७ दिन बाद ही फिर गांव पर शत्रु ने बढ़ाई कर दी। गकुर सामना करने के लिए ससैन्य घोड़े पर चढ़कर शत्रु को परास्त करने निकले । सस्ते में वह तेली कुश की हंसली पहने खड़ा था। ठाकुर साहब ने घोड़ा एकदम निकट ने जाकर उस मुड़ी हुई कुश को दोनों हाथों से इस तरह बलपूर्वक ताना कि उसे बिलकुल सीधा करके नीचे गिरा दिया। तेली के जी में जी वाया। उसके बल का अभिमान चूर-चूर हो गया। वह ठाकुर साहब की ताकत का लोहा मान गया।
बन्धुओ ! बल का गर्व करना भी वृथा है। अहंकार के रास्ते बहुत सूक्ष्म हैं। मार्ग बहुत अपरिचित है। अहंकार त्याम से भी भर सकता है, शाम से भी, धम से भी, पद से भी । एक आदमी रोज स्थानक में आता है, प्रवचन सुनता है, कोई भावमी जप करता है या तप करता है, तो वह अपने आपको औरों से विशिष्ट मानने लगता है । यही अहंकार है । अहंकार एक प्रकार का नशा है, जो मनुष्य के मन पर हर कोने से चिपक जाता है। अहंकार का मूल रूप 'मैं हूँ या 'मैं भी कुछ हूँ, इसी
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