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________________ अतिमानी और अतिहीन असेव्य १६६ में भीउनका नाम सूर्य-चन्द्र की तरह चमकता। लोग श्रद्धापूर्वक उनका नाम लेते, उनकी गौरव-गरिमा के आगे- सिर नमाते । किन्तु अपने अहंकार से प्रेरित होकर जो काले कारनामे उन्होंने किये, उनके कारण वे इतिहास के काले पृष्ठों पर अंकित किये गये। .... यह अहंकार था, जिसके कारण महत्त्वाकांक्षी नेपोलियन गलत मार्ग पर चढ़ गया। नैपोलियन बाल्यकाल से ही महत्त्वाकांक्षी था । वह समाज में अपना विशेष महत्त्व और मूल्य चाहता था। उसकी बड़ी इच्छा थी कि लोग उसका आदर करें, सिर झुकायें और यह माने कि नैपोलियन संसार का एक विशेष व्यक्ति हैं। उसकी यह कामना ही इस बात की द्योतक थी कि उसमें पात्रता की कमी थी, गुणों का अभाव था, जो मनुष्य को महान पथ पर लगा देते हैं। नेपोलियन की महत्त्वाकांक्षा अहंकारजन्य थी। नेपोलियन ने अपनी प्रतिष्ठा, प्रशंसा एवं विशेषता के लिए लेखक बनने का मार्ग चुना । उसे विश्वास था कि लेखक बनने पर वह अपनी महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति कर सकेगा । उसने अपने अन्दर लेखक के गुणों, उसको विशेषताओं तथा योग्यता के सद्भाव-अभाव पर विचार नहीं किया और अपनी उच्चाकांक्षा से प्ररित होकर वह १७ से २४ वर्ष तक लेखक बनने का प्रयत्न करता रहा, किन्तु सफलता नपा सका। उसका उद्देश्य लेखक या विचारक बनकर समाजसेवा करने का नहीं था, अपितु समाज में महत्ता एवं प्रतिष्ठा पाने का था। वह जल्दी से जल्दी अपने नाम की ध्वजा उड़ते देखना चाहता था। इसलिए वह अध्ययन और अभ्यास में समय न दे सका। उसने शीघ्रातिशीघ्र 'कार्सिका-इतिहास' नामक पुस्तक लिख डाली और उस समय के प्रसिद्ध विद्वान 'एब्बे रेनाल' के पास सम्मति के लिए भेज दी । निष्पक्ष विद्वान ने-"और गहरी खोज के साथ पुस्तक को दुबारा लिखो" इस प्रकार की सम्मति देते हुए पुस्तक वापस भेज दी। 'एब्बे रेनाल' की सम्मति से उसे बड़ी झुंझलाहट हुई। तत्पश्चात उसने 'प्रेम', 'आनन्द' तथा 'भान' आदि विषयों पर अनक लख लिखकर 'लिबरे पुरस्कार' की प्रतियोगिता में भेज दिये, किन्तु वे भी असफल घोषित कर दिये गये । इस घटना ने नंपालियन को बिलकुल निराश कर दिया। बस, यही से उसका मार्ग गलत हो गया और उसम संसार पर हठात् महत्ता थोप देने की प्रतिीहसा जाग उठी । इस प्रतिक्रिया का दोष उसकी अहंत्व-वृत्ति को था, जिसके कारण उसने अपनी अपात्रता की ओर नहीं देखा, समाज से हा द्वेष करने लगा। प्रतिहिंसा से प्रेरित नेपोलियन सैनिक क्षेत्र में चला गया। अपनी सम्पूर्ण शक्तियों को केन्द्रित करके उसने बहुत कुछ किया, किन्तु उसका मूल्यांकन कुछ भी न हुआ। वह सैनिक बना, सेनापति बना, आक्रामक हुआ और विजय प्राप्त की। सारे यूरोप पर आतंक बनकर छा गया। वह शासक एवं सम्राट बना, फिर भी उसका उद्देश्य असफल ही रहा । साहस, शौर्य व पुरुषार्थ के गुणों की शक्ति तथा विशेषता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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