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१६६ आनन्द प्रवचन : भाग ११
उसका पिता श्रीफल लेकर हीरजी सेठ के पास पहुँचा और कहा - " सेठजी ! मेरी पुत्री को आपके पुत्र की शर्त मंजूर है । आप यह श्रीफल स्वीकार करके सगाई पक्की कर लीजिये ।"
सेठ को इस अनहोनी बात पर साश्चर्य प्रसन्नता हुई और नवल की सगाई रम्भा के साथ पक्की कर ली। शुभ मुहूर्त में बड़ी धूमधाम से श्रेष्ठिपुत्र नवल का विवाह श्रेष्ठिकन्या रम्भा के साथ सोल्लास सम्पन्न हो गया ।
विवाह के बाद की पहली रात हमी-खुशी से बीती । रम्भा ने अपने विनीत और मधुर स्वभाव से नवल को प्रभावित करने का प्रयास किया । प्रातः होते ही नवल ने जब रम्भा को जूते खाने की प्रतिज्ञा याद दिलाई तो मृदु मुस्कान के साथ रम्भा ने कहा - "स्वामी ! आज रहने दें । हमारे विवाह के बाद का आज पहला प्रभात है । मैं चाहती हूँ, यह प्रभात किसी अशुभ कार्य से न हो । मेरे मस्तक से पहले आपका हाथ अपवित्र होगा । अतः आज के बदले कल १० जूते मार लेना । इसके अतिरिक्त मुझे सन्तुष्ट करना भी तो आपका धर्म है ।"
नवल ने यह सोचकर सहमति प्रगट की कि कल मैं १० जूते आज के बदले मार ही लूंगा । इसकी एक भी बहाने बाजी न चलने दूंगा ।
पहला दिन टला । दूसरे दिन सबेरे फिर नवल ने कहा - " तैयार हो जाओ दस जूते खाने के लिए । आज तुम्हारी बात नहीं मानू गा ।" बुद्धिमती रम्भा ने पूछा" किसके जूते मारने की शर्त थी आपकी ?"
नवल - " अपनी पत्नी के ।"
रम्भा-'
- "अभी आप पूर्णरूप से मेरे पति नही बने हैं । पूर्ण पति हो जायें तब शौक से जूते मारना । अपनी कमाई का धन अपनी पत्नी पर खर्च करने पर ही पुरुष स्त्री का पूर्णतया पति होता है। अभी तक एक छदाम भी आपने मेरे पर नहीं खर्चा है । आप पहले परदेश जाकर धन कमा लाइये, फिर पूर्णतया पति बनेंगे, और तभी मेरे सिर में जूते लगा सकेंगे ।”
नवल को यह बात लग गई। बड़ी मुश्किल से माता-पिता से परदेशगमन की अनुमति ली और जहाज में माल भरकर परदेश रवाना हुआ। रास्ते में एक लंगड़े, एक काने, एक कामलता वेश्या आदि के चक्कर में फंसकर सारा धन खो दिया और एक तेली के यहाँ नौकरी करने लगा । पिताजी के पास जब पत्र पहुँचा और बुद्धिमती रम्भा ने जब सारा हाल जाना तो वह सास-ससुर की अनुमति लेकर पुरुषवेश में जहाज में सामान लदवाकर रवाना हुई। मार्ग में वही लंगड़ा, काना और कामलता वेश्या आदि सब मिले। अपने चातुर्य से रम्भा ने सबसे ब्याज सहित सारी रकम वसूल कर ली और बहुत सा धन देकर तेली के यहाँ से नवल को छुड़ाया । नवल को अपना मित्र बनाकर रम्भा कुन्दनपुर लौटी । रम्भा के २१ दिन बाद ही नवल धूमधाम से कुन्दनपुर पहुँचा । अपनी सफलता की डींग हाँकने लगा। जब रम्भा के
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