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________________ १६४ आनन्द प्रवचन : भाग ११ अगर कोई है, पाप का मूल अगर कोई है तो कहना चाहिए वह अहंकार ही है । पतन की ओर ले जाने वाली जितनी भी प्रवृत्तियां हैं, वे सव पाप ही तो हैं । अहंकार से दूषित मनुष्य की गतिविधि कुछ इसी प्रकार की होती है। अहंकार से प्रेरित व्यक्ति की गति चाहे तीव्र हो, पर वह प्रायः पापकारी होती है, कल्याणकारी नहीं। वह अपने अहंकार को तृप्त करने के लिए दूसरों पर अत्याचार अन्याय करता है, शोषण करता है, उन्हें पैरों तले रौंदता है अपने अहंत्व की शेखी में आकर दूसरों को दबाता सताता है, प्रभुता का मद उसकी बुद्धि पर काला-घना स्वार्थ और मोह का पर्दा डाल देता है। ___ मैं ऐतिहासिक उदाहरण द्वारा आपको समझाने का प्रयत्न करूंगा कि अतिमानी मनुष्य किस प्रकार मानवता को भूलकर असुरता को अपना. लेता है ? बात अधिक पुरानी नहीं है । कच्छ के समुद्रतटवर्ती कुन्दनपुर नगर के कोटीश्वर एवं धर्मात्मा श्रेष्ठी हीरजी शाह का इकलौता लाड़ला पुत्र था–नवलकुमार । सेठ हीरजी शाह और सेठानी चारुमती के बड़े ही मनोरथों के बाद नवल का जन्म हुआ था । नवल कुछ बड़ा हुआ तब सेठ ने उसे कलाचार्य के पास अध्ययन करने हेतु भेजा। नवल स्वस्थ एवं सुन्दर था, किन्तु वह स्वभाव से था-उच्छृखल और अहंकारी । 'पुरुष नारी से श्रेष्ठ है' यह दुर्भावना उसमें घर कर गई थी। कुछ सहपाठी मित्र भी उसे ऐसे मिल गये जो दुष्ट स्वभाव के थे, और नवल की दुर्भावना का समर्थन करते रहते थे । एक-दो मित्र ही ऐसे सच्चे थे, जो नवल को सुपथ पर लाना चाहते थे, किन्तु नवल पर उनके परामर्श का कोई असर नहीं होता था। __ अहंकारी नवल ने एक दिन अपने मित्र के समक्ष अपने अहंकार प्रेरित उद्गार निकाले -“सारे शास्त्र पढ़कर मैंने तो एक ही निष्कर्ष निकाला है कि नारी ही सारे अनर्थों की जड़ है।" सन्मित्र ने कहा-नवल ! तुमने शास्त्र पढ़े ही नहीं हैं। शास्त्र में तो कहा गया है यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः । -जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ दिव्य पुरुष क्रीड़ा करते हैं। नवल ठहाका मारकर बोला-“यह तो नारियों के गुलामों का कथन हैं। मैं ऐसी अनुभवहीन उक्तियों को नहीं मानता।" मित्र-"तो फिर यों कहो न, कि मैं शास्त्रों को नहीं मानता।" नवल-"मैं तो उन जीवन्त इतिहासों को मानता हूँ, जिनमें स्त्री द्वारा हुए सर्वनाश की बातें लिखी हैं। जैसे सीता के कारण राम-रावण युद्ध हुआ, द्रौपदी के कारण महाभारत हुआ।" - मित्र-"तुमने तो भारत का इतिहास विपरीत ढंग से पढ़ा है । नारी स्वयं पूज्य है; शक्ति और भक्ति है। स्त्री की रक्षा संस्कृति की रक्षा है । स्त्री की मृदु मुस्कान और मधुरता के आगे तुम भी झुक जाओगे।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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