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अतिमानी मौर बतिहीन मोम्म
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पथ छोड़कर उद्धतता को अपना लेता है। परन्तु यह उद्धतता किसी से भी बर्दाश्त नहीं होती। सभी को अहंकार बुरा लगता है। भले ही कोई उसका तत्काल विरोध न करे, पर अवसर आने पर अहंकारी का कोई भी सच्चा मित्र नहीं रहता । चापलूस और खुशामदी लोग जो अपने मतलब के लिए उसके नाक के बाल बने हुए थे, समय आते ही अंगूठा बता देते हैं।
अहंकारी के मन से सब सद्गुण उसी प्रकार विदा होने लगते हैं, जिस प्रकार तालाब का पानी सूखने पर उसके तट पर रहने वाले पक्षी अन्यत्र चले जाते हैं । अहं. कार से अन्य दुगुणों का पोषण होता है, जो मनुष्य को भवबन्धनों में जकड़ने में कठोर लोहश्रृंखला का काम करता है । घमंडी आदमी में वे सब दुगुण पैदा हो जाते हैं, जो किसी असुर या गुण्डे में होते हैं । असुरों या गुण्डों का अहंकार प्रारम्भ में विकृत होता है, बाद में वे दूसरों को तुच्छ समझने लगते हैं। वे अपने कार्य में जरा-सा व्याघात होते ही सर्पदंश-सा अनुभव करने लगते हैं और तुरन्त विषैले साँप की तरह अनर्थ करने पर उतारू हो जाते हैं। एकाध बार ऐसे अनर्थों में सफलता मिलने पर तो वे पूरे नरपिशाच बन जाते हैं । डाकुओं और हत्यारों में लोभवृत्ति इतनी प्रबल नहीं होती जितनी अहंता । अहंकार का प्राबल्य ही अधिक होता है, उनमें । अहंता को ही असुरता का प्रतीक माना गया है। यदि अपराधियों के मस्तिष्क से अहंकार का तत्त्व निकाला जा सके तो वे शीघ्र ही अच्छे मानव बन सकते हैं ।
अहंकार मनुष्य को इतना स्वार्थी बना देता है कि वह केवल अपने गुण और वैभव ही नहीं, उनका लाभ भी दूसरों को नहीं देता। इतना ही नहीं बल्कि अपने अहंकार की तृप्ति के लिए वह दूसरे की विशेषताओं तथा विभूतियों का भी शोषण करने का प्रयत्न करता है । सारे संघर्ष, लड़ाई, झगड़े, राम-वृष इसी कारण हैं कि अभिमानग्रस्त मानव अपने आप को सबसे आगे देखने का यत्ल करता है और दूसरे को पीछे। इस आगे-पीछे के संघर्ष से ही ये विषाक्त बातें फूट पड़ती हैं। अपनी पहल करना अभिमानी का नियम है।
अहंकार का अर्थ है-अपने तक सीमित रहने की संकीर्णता । अहंकारी का असहयोगी होना स्वाभाविक है। वह सब कुछ अपने लिए ही करना चाहेगा, अपने लिए ही संग्रह करेगा, केवल अपनी ही सुख-सुविधा पर दृष्टि रखेगा, तब भला वह दूसरों के सुख-दुःख में, दूसरों की उन्नति और जीवन-यापन में किस प्रकार सहायक और सहयोगी हो सकता है ?
अहंकारी यहां तक सोचता है कि मैंने अपना विकास स्वयं ही किया है, मैने समाज से कोई सहयोग नहीं लिया । समाज के ऋण और सहयोग का महत्त्व भूलकर यदि कोई इतराता है, और अहंकारी बनकर मदोन्मत्त होता है तो यह उसकी तुच्छता बौर असुरता है । अहंकार ही तो असुरता का प्रधान लक्षण है । मनुष्य में जितना अधिक अहंकार होता है उतनी ही गहरी आसुरी वृत्ति होती है । दुष्टता का जन्मदाता
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