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आनन्द प्रवचन : भाग ११
मानव परिवार, समाज, राष्ट्र या धर्मसम्प्रदाय में अपने अलावा अन्य किसी को महत्त्व नहीं देता।
मनुष्य में आत्मविश्वास का होना अलग बात है, अहंकार उससे सर्वथा भिन्न है । आत्मविश्वास और अहंकार मोटे रूप में एक-से दीखते हैं, मगर इनमें जमीन-आसमान-सा अन्तर होता है । जैसे कायरता और अहिंसा एक-सरीखी लगती हैं, पर दोनों की मनोदशा में दिन-रात जैसा भेद रहता है । आत्मविश्वास एक आध्यात्मिक गुण है; जिसका अर्थ होता है-कतव्यमार्ग पर दृढ़ रहना, कठिनाइयों में तनिक भी विचलित न होना । आत्मविश्वासी आत्मा की महत्ता मानते हुए भी सावधानी, परिश्रम, अन्तनिरीक्षण, अध्यवसाय, परिस्थितियाँ, अन्य का सहयोग, जागरूकता आदि बातों पर सफलता को अवलम्बित समझता है, तथा फलाकांक्षा की परवाह न करके अपने सुनिश्चित पथ पर बढ़ता चला जाता है, जबकि गर्वग्रन्थि या अहंकार से ग्रस्त व्यक्ति जरा सी सफलता पाकर सोचने लगता है-मैं ही सब कुछ हूँ; मुझ में कोई त्रुटि नहीं, मेरी बुद्धि सारी दुनिया से बढ़कर है; मैं जो चाहूँ, चुटकी बजाते ही पूरा कर सकता हूँ। दर्प-सर्प से दंशित व्यक्ति अपनी शक्ति, क्षमता, योग्यता और प्रकृति का बिना मूल्यांकन किये अपनी ताकत का पूरा नाप-तौल किये बिना ही कठिन कार्य प्रारम्भ करने की धृष्टता कर बैठता है, उसके अन्तर्मन में महत्त्वाकांक्षा, पदलोलुपता या अधिकारलिप्सा इतनी प्रबल हो जाती है, कि वह उस महत्वपूर्ण कार्य में दूसरों के सहयोग, सावधानी, जागरूकता, परिस्थिति आदि की बिलकुल उपेक्षा कर डालता है । फलतः जब उस कार्य में असफलता मिलती है तो तिलमिलाने लगता है । वह अपने उपादान का दोष न देखकर निमित्तों को दोष देने लगता है। अहंकार को मद इसलिए कहा गया है कि जैसे नशीली चीजें खाने से मनुष्य में उन्मत्तता आ जाती है, उसी प्रकार एक छोटी-सी सफलता पाकर मनुष्य में उन्मत्तता आजाती है, उसका दिल-दिमाग अपने काबू में नहीं रहता। वह मामूली-सा पद, लाभ, श्रेय या महत्त्व पाकर इतराने और बौराने बगता है। उसकी अकड़ उद्दण्डता और अशिष्टता के रूप में चेहरे पर झलकती रहती है। दोहावली में कहा है
छाती निकली ही रहे, तना रहे भ्र भंग । 'चन्दन' मिथ्या मान का, छिपा न रहता रंग ।। चढ़े हुए रहते सदा, अभिमानी के नैन ।
सम्मुख कम ही देखते, दिन हो, चाहे रैन ।। विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर अहंकारी के लिए सुन्दर प्रेरणा देते हैं—“धुआ आसमान से शेखी बघारता है और राख पृथ्वी से कि हम अग्निवंश के हैं।". अतिमानी से सद्गुणों का पलायन . इसी प्रकार अतिमानी व्यक्ति जरा-सी सिद्धि या सफलता पाकर सज्जनता का
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