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अतिमानी और अतिहीन असेव्य
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कहा - "देख, मैं कितनी विशाल हूँ, अजेय हूँ । तुम तो छोटी-सी हो, तुम्हें तो हर कोई चूर-चूर कर सकता है, उठाकर एक ओर पटक सकता है, पर मेरी शक्ति के समक्ष सभी परास्त हो जाते हैं, मुझे चूर-चूर करना तो दूर, उठाकर फेंकना भी टेढ़ी खीर है । अत: मैं महान् हूँ, अपराजिता हूँ, मैं चाहूँ तो यात्रियों की राह बदल सकती हूँ, सघन मेघमालायें मुझ से टकराते ही पानी-पानी होकर बरस पड़ती हैं ।"
छोटी चट्टान ने बड़ी मायूसी और उदासी के स्वर में कहा—“बहन ! मैं तो इस विशाल सृष्टि में अत्यन्त तुच्छ हूँ। मैं शक्तिहीन और क्षुद्र चट्टान भला क्या कर सकती हूँ | मेरा अस्तित्व कुछ भी नहीं है । और फिर दुनिया में स्थायी कौन रहा है ? सभी एक दिन नामशेष हो जाते हैं । जो बना है, वह एक दिन मिटेगा ही । फिर इस बल, रूप आदि का अभिमान करने से क्या फायदा ? "
बड़ी चट्टान ने और अधिक गर्वगर्जना के साथ कहा - "रहने दे, तेरा उपदेश । तू तुच्छ नाचीज और निर्बल मुझे क्या समझाती है । कल ही देख लेना, मेरे बल और चमत्कारी व्यक्तित्व का प्रभाव ।”
और रात्रि के सघन अन्धकार में बड़ी चट्टान ने छोटी चट्टान के इन्कार करने और समझाने के बावजूद भी अपनी जगह बदल ली और छोटी चट्टान को कायर, दब्बू और नीच कहती हुई मार्ग के ठीक बीचोंबीच आ गई । अब क्या था । सारा यातायात ठप्प हो गया । सड़क के दोनों ओर लगभग एक मील तक पैदल यात्री, सवारी गाड़ियाँ, कारें, ट्रकें, बसें पंक्तिबद्ध खड़ी थीं। सभी चिन्तित, व्यथित होकर मुंह लटकाये खड़े थे । चट्टान को हटाने की सभी कोशिशें विफल हो गईं । और वह चट्टान अपने मिथ्याभिमानवश मुस्करा रही थी ।
छोटी चट्टान ने उससे सविनय कहा - " बहन ! अपने जीवन का इस तरह दुरुपयोग करके दूसरों की राह में बाधा डालने से क्या लाभ है ? तुम बड़ी हो तो बड़े काम करके दिखाओ ।"
किन्तु बड़ी चट्टान अपने घमंड में अड़ी रही । उसने सुनी-अनसुनी कर दी और मार्ग के बीच में बिना हिले-डुले लेटी रही ।
यातायात रुकने से वहाँ मेला-सा लग गया था । उस जमघट में दो यात्री ऐसे थे, जो बारूद लगाने का काम करते थे । वे आगे बढ़े और जांच पड़ताल के बाद उन्होंने आत्मविश्वासपूर्वक अपनी छैनी-हथौड़ी निकाली और उस विशाल चट्टान में छेद
करने लगे ।
इतना होने पर भी मूर्ख चट्टान कुछ भी समझ न पाई । उसने पुनः सगर्व गर्जकर कहा - " कौन मेरा अस्तित्व मिटा सकता है ? अरे ! इन खीलों से ये क्या, इनसे बड़े भी आ जायें, तो भी मेरी विशाल और सुदृढ़ काया को ये दुःसाहसी वर्षों तक छैनी - हथौड़े चलाते रहें, तो भी मुझे संदेह बिगाड़ पायेंगे ।"
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नहीं तोड़ सकेंगे ।
है कि मेरा कुछ
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