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( २० ) जे धम्मिया ते खलु सेवियव्वा । जे पंडिया ते खलु पुच्छियव्वा ॥ जे साहुणो ते अभिवंदियव्वा । जे निम्ममा ते पडिलाभियव्वा ॥१४॥ धार्मिक जन की सेवा करिए, पंडित नर से पूछो ज्ञान । साधुजनों की करो वंदना, अपरिग्रही को देना दान ॥१४॥ पुत्ता य सीसा य समं विभत्ता । रिसीय देवा य समं विभत्ता ॥ मुक्खा तिरिक्खा य समं विभत्ता। मुआ दरिद्दा य समं विभत्ता ॥१५॥ पुत्र, शिष्य को तुल्य समझिए, ऋषि, देवों को समझो तुल्य । मूर्ख, और पशु तुल्य कहे हैं, है दरिद्र का मृत-सम मूल्य ॥१५॥
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