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आनन्द प्रवचन : भाग ११
- जो व्यक्ति केवल शास्त्रों की लम्बी-चौड़ी व्याख्या करते हैं, भाषण करते हैं, किन्तु तदनुसार आचरण नहीं करते । वे बन्ध और मोक्ष की सिर्फ जानकारी रखने वाले हैं और वाणी की शूरवीरता से वे अपने आप को झूठा आश्वासन दे देते हैं, लेकिन वास्तव में बन्धनमुक्त नहीं हो पाते । अतः विद्या का ममं उसे केवल स्मरण करना ही नहीं, व्यावहारिक जीवन में उतारना भी है । विद्या के साथ जब कोई क्रिया रहती है, तभी वह तेजस्वी बनती है; अन्यथा क्रियाहीन विद्या, पराक्रमी और तेजस्वी नहीं होती । वेदों में कहा है- 'क्रियावान एष ब्रह्मविदां वरिष्ठः, आत्मवेत्ताओं क्रियावान आत्मवेत्ता श्रेष्ठ होता है । अर्थात् — आत्मविद्या को वेदों ने क्रिया की कसौटी पर कसा है । जो आत्मविद्या क्रिया की कसौटी पर ठीक नहीं उतरती, वह आत्मविद्या ही नहीं है ।
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महाभारत का एक प्राचीन उदाहरण लीजिये -
द्रोणाचार्य कौरवों और पाण्डवों को समान रूप से समस्त विद्याओं का अध्ययन कराते थे । उनकी वाणी में ओज, व्यक्तित्व में प्रभावशीलता तथा व्यवहार से वात्सल्य प्रवाहित होता था ।
एक दिन वे समस्त शिष्यों के मध्य बैठे उपदेश कर रहे थे। उन्होंने कहा"मनुष्य को कभी क्रोध नहीं करना चाहिए । क्रोध करने से विवेक नष्ट होता है, विवेकशून्य मनुष्य कोई यथार्थ निर्णय नहीं ले पाता ।" इस पाठ को उन्होंने दूसरे दिन याद कर लाने का भी आदेश दिया ।
नियत समय पर दूसरे दिन गुरु द्रोणाचार्य आये । नया पाठ्यक्रम शुरू करने से पूर्व उन्होंने सभी को सम्बोधित करते हुए कहा - " वत्स ! कल की बात तुम्हें स्मरण रही ?"
लगभग सभी छात्रों ने स्वीकार किया कि हमें याद है । केवल युधिष्ठिर ही थे, जो चुपचाप सिर नीचा किये बैठे थे । आचार्य समझ गये । उन्होंने प्रताड़ित करते हुए कहा – “कल अवश्य याद करके लाना ।”
दूसरे दिन उसी क्रमानुसार अगला पाठ प्रारम्भ करने से पूर्वं वही प्रश्न आचार्यजी ने किया - " युधिष्ठिर ! आशा है, आज तो तुमने पाठ अवश्य ही याद कर लिया होगा ।"
किन्तु युधिष्ठिर का उत्तर
आज भी नकारात्मक था । इससे द्रोणाचार्य ने रोष में आकर कहा - " मूर्ख ! तीन दिन में एक पंक्ति भी याद न कर सके । लज्जा आनी चाहिए तुम्हें ! तुम से छोटे भाई सभी कल ही सुना चुके हैं। अच्छा आज और क्षमा करता हूँ । कल अवश्य ही याद हो जाना चाहिए ।"
किन्तु तीसरे दिन भी जब युधिष्ठिर ने कहा - "गुरुदेव ! मुझे अभी तक पाठ अच्छी तरह याद नहीं हुआ है," तब गुरुजी का पारा गर्म हो गया । उन्होंने युधिष्ठिर
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