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१७८ आनन्द प्रवचन : भाग ११ साथ लेकर नदी पार करने का निश्चय किया। एक बच्चे को नदी के उस पार छोड़कर जैसे ही वह लौटी तो उसने देखा कि उसके नवजात शिशु को एक भेड़िया दबोचकर ले जा रहा है । वह चिल्लाई । उसके रोने की आवाज सुनकर नदी के उस पार खड़े बच्चे ने समझा-'माँ बुला रही है।' वह भी नदी में कूद पड़ा और उसकी तीव्र धारा में डूबकर मर गया । पट्टाचारा यह आषात न सह सकी, वह पागल-सी हो गई।
अविद्या के कारण पट टाचारा ने दुःख की परम्परा सहन की। वह तथागत बुद्ध की सेवा में पहुँची। उनके सामने अपनी दुःखभरी कथा कह सुनाई। तथागत ने उसे सौम्य शब्दों में कहा—“पट्टाचारा ! अविद्या के कारण मनुष्य एक दिन इष्टसंयोग में सुख मानता है, किन्तु जब उसका वियोग हो जाता है, तब वही सुख दुःख में परिणत हो जाता है। तूने अविद्या के कारण सौन्दर्य और वासना से आकर्षित होकर एक पुरुष को अपना पति माना, फिर जो सन्तान हुई, उसे अपने पुत्र के रूप में माना, क्षणिक विषय-सुखों को सुख माना। भला, ये सब तेरे अपने कहाँ थे ? तू ही तो अविद्या के कारण इन्हें अपने मान बैठी थी। अतः अब अविद्या को छोड़, विद्यावान बन ।” पटटाचारा विरक्त हो गई, वह बौद्धभिक्षुणी बनकर आत्म-विद्या के प्रकाश में स्व-पर-कल्याण के पथ पर विचरण करने लगी। अविद्या की दुनिया : भूल-भुलैया भरी
वास्तव में प्रेय का मार्ग अविद्या का मार्ग है, श्रेयमार्ग ही विद्या का सुपथ है । प्रेय के लुभावने मार्ग पर चढ़कर अविद्यावान पुरुष बार-बार भटकता है, संसारसागर में गोते खाता है और उसी में जन्म-जरा-रोग-मृत्यु सम्बन्धी दुःख पाता रहता है ।
अविद्या की इस दुनिया को आध्यात्मिक भाषा में 'भवसागर' कहते हैं । वैदिक परिभाषा में इसे मायानगरी भी कहते हैं । भवसागर इसलिए कहा गया है कि वह कामक्रोध-लोभादि घड़ियालों और मगरमच्छों से भरा पड़ा है, जो दाँव लगते ही शिकार को निगल जाते हैं । विद्यावान इनसे सतर्क रहते हैं, मगर अविद्यावान इनके शिकार हो जाते हैं, उन्हें काम-क्रोधादि मगरमच्छ निगल जाते हैं। वे नष्ट हो जाते हैं।
मायानगरी इसलिए कहा जाता है कि यहाँ अविद्याग्रस्त मनुष्य कदम-कदम पर भूलभुलयों के महल में फंस जाता है। उसका बाहर निकलना तब तक नहीं हो सकता, जब तक कि वह विद्यायुक्त होकर अपनी व्यवसायात्मिका बुद्धि का प्रयोग न करे । इसमें जरा-सी असावधानी अथवा उपेक्षा करने पर उसी जादुई महल में भटकता रह जाता है।
पाण्डवों का एक राजमहल इस खूबी से बनाया गया था कि उसमें जल के स्थान पर स्थल और स्थल के स्थान पर जल दिखाई देता था। दुर्योधन एक दिन उसे देखने गया तो धोखा खा गया। द्रौपदी इस पर हंस पड़ी और यही हंसी अन्त में महाभारत का कारण बनी ।
अविद्या की इस मायानगरी में दुनिया का सारा महल ही दुर्योधन जैसे अविद्याग्रस्त लोगों को भूलभुलैया-सा लगता है। इसमें अविद्यावान को सर्वत्र जल
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