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अविद्यावान पुरुष : सदा असेव्य
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ऐसी साधना सच्चे माने में विद्यावान ही कर सकता है; अविद्यावान नहीं। समझ से ही यह साधना सम्पन्न हो सकती है, आवेश से नहीं।"
पिता ने खूब समझाया, वह अच्छे सम्बन्ध की तलाश में निकल भी पड़ा था । लेकिन कामवासना के प्रबल आकर्षण के आगे विद्यावान पिता की विवेकयुक्त बात पुत्री के गले न उतरी । जहाँ विवेक और आस्था न हो, वहाँ धैर्य न रहना स्वाभाविक है । पट्टाचारा ने अपने प्रेमी से सलाह की और एक रात को दोनों घर से भाग निकले । पिता जब तक घर पहुंचा, तब तक तो वह बहुत दूर निकल गई।।
जिस अविद्यावान को सौन्दर्य का आकर्षण हो, उसका अपने माता-पिता पर अनास्था, उठती उम्र में अविवेक और पथभ्रष्ट होकर वासना का शिकार बन जाना स्वाभाविक है । कुटुम्ब के अनुशासन से मुक्त हो जाने तथा किसी प्रकार का बन्धन न रह जाने पर अविद्यावान नर-नारी का एक दूसरे के यौवन के प्रति ही आकर्षण शेष रह जाता है। अविद्याग्रस्त पटटाचारा के जीवन में वासना प्रविष्ट हुई तब उसे स्वर्गीय सुखों की अनुभूति हुई; मगर उस अभागिन को क्या पता था कि वासना का सुख जवानी और स्वस्थता तक ही रहता है, बाद में निचोड़े हुए आम की तरह शरीर का ओज नष्ट हो जाने पर दाम्पत्य प्रेम की वह मस्ती, वह उमंग, जो कभी पहले थी वह समाप्त हो जाता है। यही हुआ, पति-पत्नी एक दूसरे को सन्देह की दृष्टि से देखने लगे।
पट्टाचारा गर्भवती हुई । एक पुत्र को जन्म दिया। शरीर सौन्दर्य पहले ही कम हो गया था, अब एक और जीव के गर्भ में आजाने से उसका ध्यान पति की ओर से हटना स्वाभाविक था । अब भी वे मिलते थे, पर कामवासना की तृप्ति के लिए हो। निदान पटटाचारा शीघ्र ही पुनः गर्भवती हो गई। उसका शरीर भारी रहने लगा । आलस्य सताने लगा । आलस्य और शिथिलता की जो बातें संयुक्त परिवार में छिपी रहती हैं, वे यहाँ स्वच्छन्द एवं व्यक्तिजीवी पति-पत्नी में कहाँ सम्भव थीं ! फलतः व्यग्रचित्त पट्टाचारा ने माता-पिता और कुटुम्बी जनों को याद किया। पट्टाचारा अपने प्रेमी-पति से घर चलने का आग्रह करने लगी, पर उसका प्रेमी पति उसके लिए राजी नहीं हो रहा था । उसे चरित्रभ्रष्टता का भय सता रहा था । पट्टाचारा के अत्याग्रह के कारण उसने बात मान लो । वह श्रावस्ती की ओर चल पड़ा।
परन्तु अविद्या के कारण दुःखों का अन्त अभी नहीं हुआ था। कुछ दूर चलते ही पटाचारा के पेट में प्रसव-पीड़ा उठी। पति ने उसके लिए एक पर्णकुटी बना ली, फिर जैसे ही वह पानी के लिये निकला, एक सर्प ने उसे डस लिया। पट्टाचारा इधर पुत्र को जन्म दे रही थी, उधर उसका पति मर रहा था । बहुत रोई-धोई, पर क्या हो सकता था? आखिर अपने दोनों बच्चों को लेकर वह घर की ओर चल पड़ी। रास्ते में नदी पड़ती थी, उसे पार करना कठिन था। आखिर पट्टाचारा ने एक-एक बच्चा अपने
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