________________
आनन्द प्रवचन : भाग ११
वर्तमान युग की भाषा में पढ़े-लिखे या शिक्षित (Educated) को विद्यावान कहते हैं।
___ जो भी हो, प्रत्येक धर्मशास्त्र में विद्या का बहुत बड़ा महत्त्व बताया गया है। शंकर प्रश्नोत्तरी में भी विद्या की महत्ता इन शब्दों में बताई है
"मातेव का या सुखदा ? सुविधा।
किमेधते दानवशात् ? सुविद्या ॥"१ -माता के समान सुख देने वाली कौन है ? सुविद्या है । देने से कौन सी चीज बढ़ती ह ? सुविद्या।
विद्या वह धन है जिसे न तो राजा ले सकता है, न चोर चुरा सकता है, न जिसमें से भाई लोग हिस्सा ले सकते हैं तथा जो खर्च करने से बढ़ता है। इसलिए विद्या धन सभी धनों में श्रेष्ठ है। यदि किसी व्यक्ति के पास पवित्र विद्या है तो उसे धन से क्या प्रयोजन है। जो विद्या से रहित है, वह पशु है।४।
अविद्या क्या है ?–अविद्या विद्या से विपरीत स्थिति है। विद्या के जो लक्षण बताये गये हैं, उससे उलटी तथा दुःखदायिनी, अहंकारवर्द्धक, काम-क्रोध आदि दुर्गुणों की उत्पादक अविद्या है । वेदान्त की भाषा में माया को अविद्या कहते हैं, जैन परिभाषा में अज्ञान को अविद्या कहते हैं। - अविद्यावान—जिस व्यक्ति के पास पूर्वोक्त विद्या न हो, वह अविद्यावान है, अशिक्षित है, जो चौदह विद्याओं या लौकिक-लोकोत्तर विद्याओं से विहीन है, वह भी अविद्यावान है । जो मोह-माया में लिपटा हुआ है, काम-क्रोधादि रिपुओं से आहत या ग्रस्त है वह अविद्यामय है।
२७ प्रकार के व्यक्ति अविद्यावान होते हैं, पूर्ण श्रेष्ठ विद्या का उनमें अभाव है श्री अमृतकाव्यसंग्रह में यही बताया गया हैकामी क्रोधी लोभी अरु दरिद्री प्रमादी मूढ़, .
दुःखी पराधीन पक्षपाती अभिमानी को। मोह-मदवन्त व्यग्र चंचल' कृपण पुनि,
रहे सोच सकूची कुसंगी औ अज्ञानी को। अनाचारी आलसी अभागी अनचाही नर,
. निन्दक अनोसरी अधीर अकुलानी को।
१. शंकराचार्य प्रश्नोत्तरी २५ २. न राजहार्य, न च चौरहार्य, न भ्रातृभाज्यं, न च भारकारम् ।
व्यये कृते वर्धत एव नित्यं, विद्या धनं सर्वधनप्रधानम् । ३. किमुधनैविद्याऽनवद्या यदि- भर्तृहरि : नीतिशतक २१ ४. विद्याविहीन: पशु-भर्तृहरि : नीतिशतक २०
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org