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१७० आनन्द प्रवचन : भाग ११ करके अपनी पत्नी की रुग्णावस्था में अग्लानभाव से सेवा की और नरनारी-समानाधिकार तथा पत्नीव्रत के आदर्श को निभाया ।
स्वतंत्र स्त्री-पुरुषों में (परस्त्री-परपुरुष में) दाम्पत्य प्रेम, हार्दिक या आत्मिक प्रेम तो नाममात्र को भी नहीं होता, इस कारण उनसे होने वाली सन्तान पर भी कोई प्रेम नहीं रहता। बल्कि दुर्विषयभोग के शिकार बने हुए प्रेमी-प्रेमिका प्रसवक्रिया के समय ही संतान को समाप्त कर देते हैं । प्राय: ऐसी अवैध संतान को समाप्त कर देने में वे अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा सुरक्षित समझते हैं। कभी-कभी तो कृत्रिम संतति नियमन करके संतति-प्रवाह को भी लुप्त कर देते हैं।
__ इसके अतिरिक्त स्वच्छन्द स्त्री-पुरुष सिर्फ यौनाचार तक ही सम्बन्ध रखते हैं, विषयभोग की शक्ति खत्म हो जाने पर न तो एक दूसरे की सेवा करते हैं, न सारसंभाल रखते हैं, न ही सुख-दुःख में साथी-समभागी बनकर रहते हैं।
बन्धओ ! परस्त्रीसेवन किसी भी हालत में अनुमोदनीय व समर्थन योग्य नहीं है। यही कारण है कि महर्षि गौतम ने इस जीवनसूत्र में स्पष्ट प्रेरणा दी है
'न सेवियव्वा पमया परक्का' । - आप भी भारतीय संस्कृति के इस अनुभवयुक्त जीवनसूत्र को क्रियान्वित करके इस लोक और परलोक में सुखी बनें।
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